Monday 9 November 2015

जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है.........

       (९ नवंबर,१९३६ - १० फरवरी,१९७५)  
       एक आदमी
          रोटी बेलता है, 
          एक आदमी रोटी खाता है
          एक तीसरा आदमी भी है,
              जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
            वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
               मैं पूछता हूँ--
            'यह तीसरा आदमी कौन है' ?
          मेरे देश की संसद मौन है।
  ‘रोटी और संसंद’ सुदामा पांडेय "धूमिल" की ये कविता इस वक्त सबसे ज्यादा याद आती है जब देश की अधिकांश आबादी रोटी के आगे पीछे घूम रही है। रोटी का खेल भी इसी की तरह गोल -गोल है। संसद को यानी देश की सत्ता से सवाल करती कविता या कवि। हालांकि ये महत्वपूर्ण नहीं होता है कि किसने लिखी है रचना बल्कि यह  हमेशा से ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है की क्या कह रही है  रचना। यही सवाल गोरख पांडेय ने भी  किया हैं , अदम गोंडवी  व पाश या अन्य कवियों  ने। महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे सवाल किये गए। रचनाकारों का एक वर्ग अपने समय के साथ जिया और उसकी चिंताओं के साथ। खाने -पीने -जीने-मरने के अलावा इस तरह का काम और सोच समाज को जिंदा रखने के लिए ही हैं। रचनाएं किसी के नाम के लिए नहीं जानी जाती है ये अपने सवालों के लिए जानी जाती है। 
                   धूमिल का जन्म आज ही दिन यानी 9 नवंबर 1936 को उत्तर प्रदेश के खेवली में हुआ था जो कि वाराणसी जिले में है। 39 साल की कम उम्र में ही 10 फरवरी 1975 ब्रेन ट्यूमर से जूझते हुए उनकी मौत हो गई थी। धूमिल हिंदी कविता के साठोत्तरी कविता के  महत्वपूर्ण कवि हैं। सुदामा पाण्डेय धूमिल अपने बागी तेवरों और संघर्ष के लिए आवाज मजबूत करने वाली कविताओं के लिए जाने जाते हैं। 1972 में धूमिल का काव्य संग्रह आया ‘संसद से सड़क’ इसी से सबसे अधिक चर्चित हुए। आज भी उनकी यही किताब सबसे अधिक चर्चित है। इस काव्य-संग्रह में पच्चीस कविताएं हैं। धूमिल की कविताएं संख्या में बहुत अधिक नहीं हैं लेकिन जितनी हैं उनको कवि के रूप में पहचान दिलाने के लिए पर्याप्त हैं। उनके कुल तीन काव्य संग्रह हैं संसद से सड़क तक (1972) , कल सुनना मुझे (1974), सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (1984) हैं। धूमिल को मरणोपरांत ‘कल सुनना मुझे’ काव्य संग्रह के लिये साल 1979 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
      धूमिल ने पहली बार कविता तब लिखी थी जब वे सातवीं कक्षा में पढते थे। उन्होंने कहानियां भी लिखी हैं। 1984 में धूमिल की मौत के बाद उनकी दो कहानियां भी प्रकाशित हुईं ''फिर भी वह जिंदा है'' और ''कुसुम दीदी''। देश में घट रही तमाम हिंसक घटनाओं और लेखक बुद्धिजीवियों की हत्या, रचनाकारों और कलाकारों की ओर से पुरस्कार वापसी वाले माहौल में धूमिल जैसे कवियों की जरूरत और ज्यादा मससूस होती है। हालांकि ऐसे लोगों की जरूरत हमेशा से ही रही है। धूमिल जैसे चेतनाशील रचनाकारों का जीवन और मौत से कुछ खास सरोकार नहीं होता है। बस वो अपनी कविताओं के साथ इसी दुनिया में मौजूद रहते हैं। धूमिल की कविता ही उनको सबसे अधिक व्यक्त कर सकती है-
सबसे अधिक हत्याएँ
समन्वयवादियों ने की
दार्शनिकों ने
सबसे अधिक ज़ेवर खरीदा 
भीड़ ने कल बहुत पीटा
उस आदमी को
जिस का मुख ईसा से मिलता था
वह कोई और महीना था
जब प्रत्येक टहनी पर फूल खिलता था
किंतु इस बार तो
मौसम बिना बरसे ही चला गया
न कहीं घटा घिरी
न बूँद गिरी
फिर भी लोगों में टी.बी. के कीटाणु
कई प्रतिशत बढ़ गए
कई बौखलाए हुए मेंढक
कुएँ की काई लगी दीवाल पर
चढ़ गए
और सूरज को धिक्कारने लगे
— व्यर्थ ही प्रकाश की बड़ाई में बकता है
सूरज कितना मजबूर है
कि हर चीज़ पर एक सा चमकता है
हवा बुदबुदाती है
बात कई पर्तों से आती है —
एक बहुत बारीक पीला कीड़ा
आकाश छू रहा था
और युवक मीठे जुलाब की गोलियाँ खा कर
शौचालयों के सामने
पँक्तिबद्ध खड़े हैं
आँखों में ज्योति के बच्चे मर गए हैं
लोग खोई हुई आवाज़ों में
एक दूसरे की सेहत पूछते हैं
और बेहद डर गए हैं
सब के सब
रोशनी की आँच से
कुछ ऐसे बचते हैं
कि सूरज को पानी से
रचते हैं
बुद्ध की आँख से खून चू रहा था
नगर के मुख्य चौरस्ते पर
शोकप्रस्ताव पारित हुए
हिजड़ो ने भाषण दिए
लिंग-बोध पर
वेश्याओं ने कविताएँ पढ़ीं
आत्म-शोध पर
प्रेम में असफल छात्राएँ
अध्यापिकाएँ बन गई हैं
और रिटायर्ड बूढ़े
सर्वोदयी —
आदमी की सबसे अच्छी नस्ल
युद्धों में नष्ट हो गई
देश का सबसे अच्छा स्वास्थ्य
विद्यालयों में
संक्रामक रोगों से ग्रस्त है 
(मैंने राष्ट्र के कर्णधारों को
सड़को पर
किश्तियों की खोज में
भटकते हुए देखा है)
संघर्ष की मुद्रा में घायल पुरुषार्थ
भीतर ही भीतर
एक निःशब्द विस्फोट से त्रस्त है 
पिकनिक से लौटी हुई लड़कियाँ
प्रेम-गीतों से गरारे करती हैं
सबसे अच्छे मस्तिष्क
आरामकुर्सी पर
चित्त पड़े हैं ।
                                                                                                                                                        अंकिता पंवार 








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