Friday 29 July 2016

कई विधाओं के विशेषज्ञ जनवादी कवि, नीलाभ अश्क हमारे बीच नहीं रहे !


हिन्दी के मशहूर जनवादी कवि, अनुवादक, पत्रकार, रंगकर्मी, समालोचक, सामाजिक कार्यकर्ता समेत कई विधाओं के विशेषज्ञ नीलाभ अश्क हमारे बीच नहीं रहे। उनका यों अचानक चले जाना हिन्दी साहित्य जगत को एक बड़ा नुकसान है।    
नीलाभ एक प्रसिद्ध लेखक होने के साथ ही एक प्रतिबद्ध आंदोलनकारी भी थे। वह आदिवासियों के खिलाफ चलाये जा रहे ऑपरेशन ग्रीन हण्ट के खिलाफ भी खड़े रहे। 2010 में जब दस्तक पत्रिका की संपादक सीमा आजाद और उनके जीवनसाथी विश्वविजय को राष्टद्रोह और भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, तब से ही वे उनकी रिहाई के लिए लगातार आंदोलित रहे, और कुछ समय तक दस्तक पत्रिका की जिम्मेदारी भी उन्होंने संभाली। वे अपनी लेखनी के माध्यम से शोषित-उत्पीड़त के पक्ष में भी लेखन करते रहे।
नीलाभ एक कुशल अनुवादक थे उनकी यह कुशलता हमें शेक्सपियर, ब्रेख्त और लोर्का के कई नाटकों का काव्यात्मक अनुवाद में दिखाई देती है। उन्होंने विलियम शेक्सपियर के चर्चित नाटक किंग लियरका अनुवाद पगला राजाशीर्षक से किया था, और साथ ही पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत सहित कई कवियों की कविताओं का अनुवाद भी किया।  
उन्होंने अरुंधति राय की बुकर पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्सका अनुवाद मामूली चीजों का देवताशीर्षक से किया था, जिसे उनकी भाषा के लिए काफी सराहा गया। हिन्दी की दुनिया में वे फ्रेंचेस्का ओरसिनी की किताबों के बेहतरीन अनुवादक के रूप में भी वे याद किए जाते रहेंगे।
मशहूर साहित्यकार मंगलेश डबराल ने उन्हें बहुत प्रतिभाशाली साहित्यकर्मी बताते हुए कहा कि आज के समय में विरले ही चार भाषाओं हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और पंजाबी के जानकार मिलते हैं और नीलाभ उनमें से एक थे।
उनके नौ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके है। उनके चर्चित कविता संग्रह में जंगल खामोश हैशुमार है। उनका जाना निष्चय ही साहित्य जगत और जनआंदोलनों के लिए एक बड़ा नुकसान है।  
उनकी कविताएं में एक विशिट शैली की छाप दिखाई देती है जो पाठकों को अपनी और आकर्षित करती है :
जहां से शुरु होती है
ज़िंदगी की सरहद
अभी तक वहां
पहुंच नहीं पा रहे हैं शब्द
जहां कुंवारे कपास की तरह
कोरे सफ़ेद पन्नों पर
दर्ज कर रहे हैं
कवि
अपने सुख.दुख
वहां से बहुत दूर हैं
दण्डकारण्य में बिखरे
ख़ून के अक्षर
दूर बस्तर और दन्तेवाड़ा में
नौगढ़ और झारखण्ड में
लिखी जा रही है
एक और ही गाथा
रात की स्याही को
घोल कर
अपने आंसुओं में
आंसुओं की स्याही को
घोल कर बारूद में
लोहे से
दर्ज कर रहे हैं लोग
अपना अपना बयान
बुन रहे हैं
अपने संकल्प और सितम से
उस दुनिया के सपने
जहां शब्दों
और ज़िंदगी की
सरहदें
एक.दूसरे में
घुल जाएंगी...

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