बड़का साहब
ट्विटर के माध्यम से भास्कर जी के आगमन की पूर्व सूचना प्राप्त हो रही थी फिर भी रामरतन अपनी निर्बाध निद्रा को गतिशील बनाये हुए था। बेशर्म किन्तु अति आज्ञाकारी अलार्म अपना हश्र जानते हुए भी निद्रा की गति को विराम देने हेतु अवरोधक बनकर आ खड़ा हुआ,परन्तु रोज की भाँति आज भी बैरियर तोड़कर गाडी आगे निकल चुकी थी। चिड़ियों का ट्विटर लोरी का काम कर रहा था। भास्कर जी का हीमोग्लोबिन कम हो रहा था और पीलिया बढ़ती जा रही थी, जिसके ज़्वर-ताप का असर रामरतन की निद्रा पर पड़ना स्वाभाविक था। रामरतन ने आँखें खोली तो देखा, दीवार पर टँगी घड़ी मुँह टेढ़ा किए 120 अंश का कोण (8 AM ) बना रही थी।
रामरतन ने झल्लाते हुए कहा 'उफ़ ,आज भी सुबह उठने का संकल्प अधूरा रह गया.'
रामरतन संतोष जी के बताये रास्ते पर पूरी निष्ठा के साथ चल रहा था। रात को बारह बजे तक पढता और सुबह 4 बजे से उठकर पढ़ने लगता।
गोपाल दस बजे ही सो जाता और सुबह 8 बजे सो कर उठता। ऐसा ही क्रम चलता रहा और एक दिन परीक्षा भी संपन्न हो गयी। दोनों मित्र परीक्षा देकर शाम को कमरे पहुंचे। खाना-पीना भूलकर लगातार प्रश्नों का हल ढूँढ़ते रहे। अंत में पाया गया कि रामरतन के 100 प्रश्नों में से 85 व गोपाल के 45 प्रश्न सही हैं। रामरतन ने थोड़ी चिंता ज़ाहिर की,पर गोपाल निश्चिन्त था। सरकार की एक योजनानुसार रेलवे के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपने पुत्र को अपना पद प्रदान कर सकते थे,इसकी विधिवत जानकारी गोपाल को हो चुकी थी। गाँव में धान की फसल पक चुकी थी और कोहरे ,पाले से बचने के लिए किसानों के घर जाने का रास्ता देख रही थी। रघ्घू ने कल से फसल काटने की तैयारी बना रखी थी। रात में ओलावृष्टि ने लगभग आधी फसल नष्ट कर रघ्घू का काम आसान करने की कोशिश की। रघ्घू प्रकृति की ऐसी मित्रता बहुत बार देख चुका था। "खाय खातिर अन्न तौ होइ जाइ , बस खाद-पानी के बदे तनी- मनी मजूरी करे पड़ी" रघ्घू ने श्यामा की घबराहट को देखते हुए कहा। श्यामा को अधिक उपदेश देने की ज़रूरत रघ्घू को नहीं महसूस हुई क्योंकि उसके पास भी बचपन से ही आँखें थी। श्यामा को भी थोड़ी बहुत मज़दूरी और ज़्यादातर भरोसा कामधेनु पर था।
अपनी बची फसल से प्राप्त अन्न को घर में सुरक्षित रखकर दोनों मज़दूरी में लग गए। पुनः कलयुग ने अपने सबल होने का प्रमाण देते हुए निर्बल परिवार पर एक और प्रहार किया। कामधेनु अचानक बीमार पड़ गयी। ओझा जी ने दो-तीन दिन तक झाड़-फूंक किया। अंग्रेजी पशु-चिकित्सक पाँव भर आटे में संतुष्ट नहीं हो सकता था। होनी को होने से कौन रोक सकता है ? कामधेनु बैकुंठ सिधार गयी। महीने का आखिरी दिन था। गोपाल को पिता की राज़गद्दी सँभालने का अवसर आ गया था। अब वह कमरा छोड़कर प्रशिक्षण हेतु जा रहा था। ' बहुत-बहुत बधाई दोस्त, अब तो साहब बन जाओगे लेकिन अपने दोस्त को भूल मत जाना ' कहते हुए रामरतन उसके गले लगा और भावभीनी विदाई दी। गोपाल के जाते ही रामरतन को ख्याल आया की अब नया रूम मेट कहाँ मिलेगा ? नही मिला तो -------? सोचते ही, जो आंसू खिड़की से हाथ हिलाकर दोस्त को विदाई रहे थे, अचानक भूकम्प के भय से नीचे कूद पड़े। अगली सुबह रामरतन ट्रैन पकड़कर घर को रवाना हुआ। उसे घर की किसी घटना की जानकारी नहीं थी। घर पहुंचते ही उसे ऐसा लगा जैसे घर पर त्सुनामी ने सब कुछ उजाड़ दिया हो। द्वार पर कामधेनु नहीं थी। माता-पिता की हालत ऐसी थी जैसे वर्षो से भोजन नही मिला हो। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। मन में पश्चाताप कर रहा था कि ' मैं वहाँ आराम से रह रहा था और यहॉ मॉ-पिता कष्ट झेल रहे थे। अब शहर नहीं जाऊँगा।' रघ्घू ने समझाया कि जो भाग्य में लिखा है उसे कोई टाल नहीं सकता इसलिए वह शहर जाकर पढाई करे। इसके लिये रघ्घु ने खेत अधिया उठाने का भी निश्चय कर लिया था। रामरतन नहीं माना। वह भी माता-पिता के साथ दूसरों के खेत काटने जाने लगा।
अपनी बची फसल से प्राप्त अन्न को घर में सुरक्षित रखकर दोनों मज़दूरी में लग गए। पुनः कलयुग ने अपने सबल होने का प्रमाण देते हुए निर्बल परिवार पर एक और प्रहार किया। कामधेनु अचानक बीमार पड़ गयी। ओझा जी ने दो-तीन दिन तक झाड़-फूंक किया। अंग्रेजी पशु-चिकित्सक पाँव भर आटे में संतुष्ट नहीं हो सकता था। होनी को होने से कौन रोक सकता है ? कामधेनु बैकुंठ सिधार गयी। महीने का आखिरी दिन था। गोपाल को पिता की राज़गद्दी सँभालने का अवसर आ गया था। अब वह कमरा छोड़कर प्रशिक्षण हेतु जा रहा था। ' बहुत-बहुत बधाई दोस्त, अब तो साहब बन जाओगे लेकिन अपने दोस्त को भूल मत जाना ' कहते हुए रामरतन उसके गले लगा और भावभीनी विदाई दी। गोपाल के जाते ही रामरतन को ख्याल आया की अब नया रूम मेट कहाँ मिलेगा ? नही मिला तो -------? सोचते ही, जो आंसू खिड़की से हाथ हिलाकर दोस्त को विदाई रहे थे, अचानक भूकम्प के भय से नीचे कूद पड़े। अगली सुबह रामरतन ट्रैन पकड़कर घर को रवाना हुआ। उसे घर की किसी घटना की जानकारी नहीं थी। घर पहुंचते ही उसे ऐसा लगा जैसे घर पर त्सुनामी ने सब कुछ उजाड़ दिया हो। द्वार पर कामधेनु नहीं थी। माता-पिता की हालत ऐसी थी जैसे वर्षो से भोजन नही मिला हो। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। मन में पश्चाताप कर रहा था कि ' मैं वहाँ आराम से रह रहा था और यहॉ मॉ-पिता कष्ट झेल रहे थे। अब शहर नहीं जाऊँगा।' रघ्घू ने समझाया कि जो भाग्य में लिखा है उसे कोई टाल नहीं सकता इसलिए वह शहर जाकर पढाई करे। इसके लिये रघ्घु ने खेत अधिया उठाने का भी निश्चय कर लिया था। रामरतन नहीं माना। वह भी माता-पिता के साथ दूसरों के खेत काटने जाने लगा।
संतोष जी सुबह-सुबह विद्यालय जाने के लिए निकले। रघ्घु के घर के पास पहुंचकर आवाज लगाने ही वाला था कि देखा रामरतन बरामदे में बैठकर सुषमा को पढ़ा रहा था। संतोष ने कहा - अरे रामरतन ! कब आये ? घर आये और हमसे मिले भी नहीं। रामरतन नमस्ते करके खडा हो गय़ा ,पर आगे कुछ बोलता उससे पहले आँसुओं ने वाचालता दिखा दी। संतोष जी स्थिति को समझ चुके थे। बोले - कम से कम एक बार मुझसे मिल तो लेते। पता है की नहीं तुम्हारा बैंक का परिणाम आ गया है। कल ही डाकबाबू ने तुम्हारा पत्र मुझे दिय़ा था। बधाई हो....अब साक्षात्कार की तैय़ारी में लग जाओ।
रघ्घू और श्यामा को ऐसा लग रहा था जैसे संतोष जी साक्षात्कार पत्र नहींं बल्कि कामधेनु लेकर आए हों।
संतोष को अतीत का कटु अनुभव था। इसलिए इतिहास दोहराना नहींं चाहते थे। विद्यालय से एक दिन का अवकाश व रामरतन को साथ लेकर शहर गए। वहॉ रामरतन को नए कपडे व जूते दिलाए। कमरे का किराया और खाने का शुल्क जमा किया। रामरतन को यह सब एक स्वप्न की भॉति लग रहा था,पर संतोष ने अपने पिछले अनुभव साझा कर उसे जगा दिया।
रामरतन साक्षात्कार की तैय़ारी में लग गया। कुछ दिनों बाद साक्षात्कार हो गया। अपना सारा सामान लेकर रामरतन घर आ गया।
घर पर रहते हुए एक महीना बीत गया था । एक दिन संतोष जी रामरतन के घर पर बैठे थे तभी डाकिया आया और एक पत्र देकर चला गया। सभी लोग उत्सुकता के साथ पत्र की ओर देख रहे थे। संतोष जी ने पत्र का अगला सिरा खोला और अन्तर्निहित पत्र को बाहर निकाला।
संतोष के मुख पर लिखे भाव को अनपढ़ रघ्घू ने पढ़ लिया और समझ गया की उसका रामरतन आज एक रतन बन गया है। संतोष को भी विश्वास हो गया कि छोटके लोगो का 'बड़का साहब' बनना मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं।
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