आह्वान

एक जनवादी सांस्कृतिक मुहिम

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Thursday, 15 October 2015

ओमप्रकाश कुशवाहा एक युवा कार्टूनिस्ट हैं, जिन्होंने समाज में घट रही घटनाओं पर कई कार्टून बनाये हैं, उनके अधिकांश कार्टून सत्ता पर प्रहार करते हुये व जनता के पक्ष में दिखाई देते हैं।








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हमारे बारे में.…

आह्वान : एक जनवादी सांस्कृतिक मुहिम है, जो लेखकों, कवियों, चित्रकारों, संगीतकर्मियों एवं नाट्यकर्मियों का एक सांस्कृतिक संगठन है। पिछले कुछ समय से लगातार सांस्कृतिककर्मियों, सांस्कृतिक संगठनों पर तेज़ी से हमले बढ़ रहे हैं और उपभोक्तावादी संस्कृति को जनता पर थोपा जा रहा है। म.म.कालबुर्गी, दाभोलकर, पेरूमरल मुरगन, गोविन्द पानसारे, जीतन मरांडी, कबीर कला मंच, चेन्नई के काॅलेज में आम्बेडकर-पेरियार स्टडी ग्रुप और हाल ही में मुजफ्फनगर अभी बाकी है जैसी फिल्मों के आयोजन पर पाबंदी लगाना हमारे सामने उदाहरण है। सिर्फ इतना ही नही ब्राम्हणवादी और साम्राज्यवादी संगठन, महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यक और आदिवासी समुदायों के मूल अधिकार जैसे कि खान-पान, रहन-सहन, पहनावे पर भी पाबंदी लगाई जा रही है और साथ ही व्यक्तिगत संबंधों और प्रेम करने के अधिकार को भी छीना जा रहा है। इससे यह साबित होता है कि जातिवर्चस्व बनाये रखने वाले- खाप पंचायत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय हिन्दू परिषद्, बजरंग दल जैसे संगठन शासक वर्गीय पार्टियों के समर्थन से जनता की आवाज को लगातार कुचल रहे हैं । पिछले एक दशक से देश में साम्प्रदायिक दंगों और जातिगत हमलों में इजाफा हो रहा है। साम्राज्यवादी ताकतें यहाँ के शासक वर्ग के साथ मिलकर ना सिर्फ आदिवासी समुदाय के जल-जंगल-जमीन को छीन रही हैं बल्कि उनकी संस्कृति का बाजारीकरण भी कर रही है। बड़े शहरों और महानगरों में पूर्वोत्तर से आने वाले छात्र-छात्राओं पर भी लगातार नस्लीय हमले हो रहे हैं। शिक्षा, कला और संस्कृति के संस्थानों पर ब्राम्हणवादी विचारधारा के प्रचारकों को नियुक्त किया जा रहा है जिससे वह जातिगत और उपभोक्तावादी विचारधारा को समाज में व्यापक रूप से फैला सकें । भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय संग्रहालय आदि उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं। शिक्षा, कला-संगीत, पेंटिग, चित्रकला, नाटक को एक ही वर्ग, जाति, धर्म तक सीमित कर दिया जा रहा है, और जनता की संस्कृति के संगठन की जरूरत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

भारत का शोषक वर्ग अपनी कु-संस्कृति को व्यापक रूप से फैला कर जनता को दलित, आदिवासी, महिलाओं, अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति संवेदनहीन बना रहा है। इसलिए हमको सांस्कृतिक पहल करनी होगी। आज बढ़ते दमन के दौर में प्रतिरोध की संस्कृति को मजबूत करने के लिए सांगठनिक रूप से विभिन्न संस्कृतिककर्मियों को, ब्राम्हणवादी, साम्राज्यवादी विरोधी मंच के माध्यम से जनता के साथ एकजुट होने की जरुरत है।

आह्वान देश के विविध क्षेत्रों और विभिन्न सांस्कृतिक जीवन में सक्रिय, रचनात्मक लेखकों, कलाकारों और कार्यकर्ताओं के बीच में जाकर काम करेगा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से दलितों, आदिवासियों के बीच एकजुटता लाएगा, साथ ही तमाम असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे कामगारों के बीच में अपने पोस्टरों/नाटकों, जनगीतों के माध्यम से जनता की संस्कृति को बचाने की मुहिम को तेज़ करेगा।

Documents

  • Dalit Panthers Manifesto (Bombay (1)
  • MANIFESTO OF PROGRESSIVE WRITERS’ ASSOCIATION ADOPTED IN THE FOUNDATION CONFERENCE 1936 (1)

Cartoons

  • Reflection of Cartoons on Hindi Diwas
  • ओमप्रकाश कुशवाहा
  • ओमप्रकाश कुशवाहा के कुछ चुने हुए कार्टून

Articles and Interviews

  • Govt silent on FTII: With students planning hunger strike
  • Remembering Gurusharan Singh
  • Remembering Kartar Singh Sarabha
  • Remembering the great revolutionary poet of Punjab
  • nterview with Chinua Achebe
  • अक्खड़ - फक्कड़ मिजाज के कवि भोला जी की स्मृति को सलाम
  • यह हिंदी सम्मेलन नहीं
  • लोकतांत्रिक.जनवादी साहित्यिक सांस्कृतिककर्मियो को एकजुट होना होगा
  • हिंदू सम्मेलन हैः राजेश जोशी

Songs

  • KABIR SUMAN'S SONG- WAKE
  • जीतन मरांडी के कुछ गीत.....

Paintings

  • अशोक भौमिक के चित्र
  • बाज़ार में बाज़ार के लिये एम. एफ. हुसैन

Stories

  • नवीन सिंह की एक कहानी
  • राष्ट्र का सेवक

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