Saturday, 14 November 2015

राजेश मून की कविता



तोता 
तेरे चोच में मैं कैसे डालूं दाना 
गगन में उड़ने वाले ये तोते
तू तो कैद है पिंजरे में 
पिंजरा है यह या 

प्रजातंत्र का जेल

जिसने किया है साथ तेरे एक खेल

तू रोया था कितना

जब किसी ने तुझपे तीर चलाया
उसपे मरहम-पट्टी करवाई
और तुझे पिजड़े में कैद करा आया
लेकिन अब जख्म भर गया
उसने रख दिए तेरे इस पिंजरे में पकवान 
क्या तू इसे खाएगा?
भूख मिटाएगा उस दरिंदे के हाथ से
मुझे मालूम है मेरे तोते
अब तेरी भूख प्यास मिट गई
चक्कर लगाता रह गया तू इस पिंजरे में
पंखों को हिला कर देख जरा
कितना भर गया है तेरा घाव
लेकिन तेरे दिल में अभी भी चोट है
गहरा घाव किया है उस तीर ने
कैसे निष्ठुर लोग हैं रे इस दुनिया के
आज़ादी से सांस भी नही लेने देते
क्या अभी भी तुझे भूख लगेगी
क्या तुझे प्यास लगेगी
नैनों से तेरे टपकते हैं ओले
कितने दिन से तू सोया नहीं है
अपनी परछाई से भी डर लगता है तुझे
देख तू घबराना मत
हर रात के बाद एक दिन उगता है
वो सूरज अब भी है इंतजार में
ले दो बूंद पी ले
ओह, अब भी नहीं पिएगा
कितने दिन इस झूठे पिंजरे में
कैदी की तरह भूखा प्यासा
बैठा रहेगा मेरे तोते
कोयल की कू की आवाज सुने 
बीत गए होगे वर्षों
आकाश तो बादल ओढ़ के सो गया
मुझसे अब बर्दास्त नहीं होता
पहला ओ कौन होगा 
जो तेरे पिंजरे का दरवाजा खोल के
तुझे आज़ाद कराएगा
मेरे तोते
ये दुनिया ऐसी ही गोल है
सुबह सूरज तो रात को चांद है
गणित में पाइथागोरस तो 
रसायन में निलभोर है
इस नीले गगन को देख रहा है तू
यहां से धरती के ऐसे ही अजूबे दिखते हैं
किसी के हाथ में तिरंगा
तो किसी के पंजे में धनुषबाण है
अमीर-गरीब तौल रहा है
तो गरीब अपने झूठे नसीब को 
मेरे तोते तू जितना हसा नहीं होगा
इस नील गगन में उतना रो रहा है इस पिंजरे में
देख मै लेकर आया हूं एक कांच का आइना 
अपनी टूटी तस्वीर को इसमें देख 
और दिखा इस दुनिया को उसकी असली तस्वीर
मुझसे और नहीं देखा जाता मेरे तोते
क्योंकि तेरे जैसा कभी मैं भी घायल हुआ था
और डाल दिया गया था ऐसे ही पिंजरे में
जहां से सदियों तक छूटा नहीं
समय ऐसा ही बीतता गया और एक दिन मैं आज़ाद हो गया
कितनो की कहानी हमारे जैसी है
कैसे करेगा अपने को आज़ाद
रुक मैं एक काम करता हूं
मैं ही तेरे पिंजरे का दरवाजा खोलकर आज़ाद करता हूं
लेकिन कोसता हूं अपने आपको कि 
तेरे ऊपर चलाने वाले सारे तीर धारी को 
हमेशा के लिए समाप्त नही कर सकता
अभी जाता हूं मेरे तोते
अलविदा मेरे तोते.

                    (28 अक्टूबर 2012)

संपर्क: म.गा.अ.हि.वि., गोरख पांडे हास्टल
गांधी हिल, वर्धा, मोबाइल 09049628308 




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