Saturday, 15 October 2016

Ipsa Shatakshi's kavitayen

Ipsa Shatakshi


नक्सलबाड़ी आंदोलन के सर्जक महान क्रांतिकारी कामरेड चारू मजूमदार के शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप एक कविता...



क्या इंसान की हत्या
विचार की हत्या हो सकती है?
क्या ये जुल्म और शोषण के खिलाफ
लड़ने के साहस की हत्या हो सकती है?
विचार तो पैदा होते हैं परिस्थितियों से
और जब तक शोषणदमनअसमानता की
खत्म नहीं हो जाती है परिस्थितियां
जिन्दा रहेंगे ये विचार
और पैदा होंगे कई चारू मजूमदार।।

क्रांति

महत्वहीन प्रतियोगिता,
करोड़ों बेकार हाथ।
मरती संवेदना
खुद तक सिमटना।

              कारण बस एक - 'कुव्यवस्था'
              उपाय बस एक - संघर्ष, क्रांति,
              और इस
              कुव्यवस्था का 'समूल नाश'




शहीद-ए-आजम भगत सिंह 
को उनके जन्मदिवस पर समर्पित...


वो नहीं जानते रूकना 
जो चल पड़े है,
तेरी राह पर।
पता है उन्हें,
राह नहीं है आसान
तुम्हारी भी तो नहीं थी
मगर चलते रहेंगे वो
तुम्हारी ही तरह
संघर्ष की राह पर
मुक्ति की राह पर
तब तक, जब तक कि
पूरा ना हो जाए वो सपने
जो देखा था तुमने
जिसके लिए न्योछावर कर दिया
तुमने खुद को।
वो नहीं जानते झुकना
जो लड़ रहे हैं
अपने-हक अस्तित्व की लड़ाई
दमन के नए-नए तैयार होते
हथियारों के बावजूद।
क्योंकि वह जान चुके हैं
चुप बैठने से नहीं मिलनेवाले
उनके अधिकार
और न ही पूरे होंगे
तेरे सपने जो हैं अब उनके भी।

संघर्ष


लाख दबाना चाहो तुम
अपनी दमनकारी नीतियों से
फासीवाद की पोषक इस व्यवस्था से
राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति का झूठा चोला पहन।
कभी झारखंड के सारंडा तो कभी पारसनाथ
कभी छत्तीसगढ़ के सुकमा तो कभी बस्तर
कभी प. बंगाल के सिंगुर-नंदीग्राम तो कभी लालगढ़
कभी तेलंगाना तो कभी आंध्र प्रदेश
कभी उड़ीसा के नारायणपटना तो कभी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली
कभी नागालैंड-मणिपुर तो कभी कश्मीर की घाटी में।
पर याद रखो तुम
नहीं रूकनेवाले हैं कदम
मानवीयता के लिए लड़नेवाले लोगों के
तुम्हारे इन भोड़े नीतियों से नहीं टेकेंगे
इस कुव्यवस्था के समक्ष घुटने।
यह लड़ाई एक मनुष्य के
सही मायने में मनुष्य होने की है लड़ाई
मनुष्य होने के अधिकारों की है लड़ाई
और इस लड़ाई में होनी ही है जीत
मानवता के पक्षधरों की ।।

pablo picasso's painting



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