16 मई के बाद
अभिव्यक्ति का संकट
और भी गहरा
गया है। हिन्दूवादी
संगठन दहशतगर्दी का
माहौल पैदा कर
अभिव्यक्ति की तमाम
विधाओं पर चौतरफे
हमले कर रहे
हैं। पेरूमल मुरूगन
का 'खुद को
मर गया' घोषित
करना हो या
नरेन्द्र दाभोलकर, गोंविद पानसारे
और अब कन्नड़
विद्धान कलबुर्गी की हत्या
हो। ये तमाम
हमले सुनियोजित तरिके
से कराए जा
रहे हैं। ये
सभी लेखक समाज
में बढ़ रही
साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, धार्मिक कटरता
के खिलाफ मुखर
होकर लिख रहे
थे, या बोल
रहे थे।
इन तमाम साहित्यिक
व सांस्कृतिककर्मियों पर
जिस तरिके से
ताबड़तौड़ हमले हो
रहे हैं। उससे
देश के लेखकों
का गुस्सा भी
लगातार बढ़ रहा
है। इन हिन्दूवादी
आतंकी घटनाओं से
आहत होकर तमाम
साहित्यकार अपना सम्मान
वापस कर रहे
हैं या अपने
पद से त्यागपत्र
दे रहे हैं।
मलयालम और अंग्रेजी
भाषा के कवि
के. सच्चिदानंदन ने
साहित्य अकादमी से ही
नाता तोड़ लिया
है, और साथ
ही साहित्य अकादमी
की विभिन्न समितियों
से भी इस्तीफा
दे दिया है।
वहीं जानी-मानी
उपन्यासकार सारा जोसेफ
ने भी अपना
साहित्य अकादमी सम्मान केंद्र
सरकार को लौटाने
का फैसला किया
है। प्रसिद्ध उपन्यासकार
शशि देशपांडे ने
साहित्य अकादमी की गवर्निंग
काउंसिल से ही
इस्तीफा दे दिया
है। हिंदी के
कवि और आलोचक
अशोक वाजपेयी ने
दादरी में बीफ
की अफवाह को
लेकर हुई हिंसा
और कई सामाजिक
व सांस्कृतिककार्यकर्ताओं की
हत्याओं पर सरकार
की चुप्पी पर
सवाल उठाया है।
इन तमाम घटनाओं
में सरकारें हिन्दूवादी
उपद्रवियों के खिलाफ
कोई ठोस कदम
नहीं उठा रही
है, बल्कि केसों
को ही कमजोर
कर रही है।
जिससे संघी दहशतगर्दों
के हौंसले और
भी बढ़ रहे
हैं। अभी हाल
ही में मैसूर
विश्वविघालय के अवकाश
प्राप्त प्रोफेसर के.एस
भगवान हिन्दूवादियों के
निशाने पर हैं।
देश के तमाम
लोकतांत्रिक, जनवादी साहित्यिक, सांस्कृतिककर्मियो को
इन विभत्स घटनाओं
के खिलाफ एकजुट
होकर अपनी आवाज
को बुलन्द करना होगा, तभी हम अभिव्यक्ति
की आजादी को
बचा पायेंगे।
16 मई के बाद
अभिव्यक्ति का संकट
और भी गहरा
गया है। हिन्दूवादी
संगठन दहशतगर्दी का
माहौल पैदा कर
अभिव्यक्ति की तमाम
विधाओं पर चौतरफे
हमले कर रहे
हैं। पेरूमल मुरूगन
का 'खुद को
मर गया' घोषित
करना हो या
नरेन्द्र दाभोलकर, गोंविद पानसारे
और अब कन्नड़
विद्धान कलबुर्गी की हत्या
हो। ये तमाम
हमले सुनियोजित तरिके
से कराए जा
रहे हैं। ये
सभी लेखक समाज
में बढ़ रही
साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, धार्मिक कटरता
के खिलाफ मुखर
होकर लिख रहे
थे, या बोल
रहे थे।
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