Saturday 31 October 2015

अमृता प्रीतम की कुछ चुनिन्दा कविताओं द्वारा उन्हें याद करते हुए...


                                     जन्म अगस्त ३१, १९१९ - मृत्यृ  अक्टूबर ३१, २००५ 

मृता प्रीतम का जन्म सन् 1919 में गुजरांवाला (पाकिस्तान ) में हुआ था। उनका बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वहीं प्राप्त हुई। अमृता प्रीतम (1919-2005) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्होंने किशोरावस्था से ही लिखना शुरू किया। उन्होंने कविता, कहानी और निबंध पर कई किताबें लिखी। उनकी प्रकाशित पुस्तकें पचास से भी अधिक हैं। उनकी कई महत्त्वपूर्ण रचनाएं देशी विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हैं।

उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि  प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी है।

उनके उपन्यास में ‘पांच बरस लंबी सड़क’, ‘पिंजर’, ‘अदालत’, ‘कोरे कागज’, ‘उन्चास दिन’, ‘सागर और सीपियां’ और उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’, कहानी संग्रह ‘कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं है’, ‘कहानियों के आँगन में’, पिंजर’ जो (हिन्दी, उर्दू, गुजराती, मलयालम, मराठी, अंग्रेजी) में अनूदित हैं।

अमृता प्रीतम उन विरले साहित्यकारों में से है एक हैं जिनका पहला संकलन 16 साल की आयु में ही प्रकाशित हुआ। फिर आया 1947 का विभाजन का दौर, इन्होंने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत करीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में इस दर्द को स्वयं महसूस किया जा सकता है। विभाजन के समय ही इनका परिवार दिल्ली में आ बसा था। अब इन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिन्दी में भी लिखना आरम्भ किया।
1960 में अपने पति से तलाक लेने के बाद, इनकी रचनाओं में महिला पात्रों की पीड़ा और वैवाहिक जीवन के कटु अनुभवों का अहसास इनके उपन्यासों में महसूस किया जा सकता है। विभाजन की पीड़ा को लेकर इनके उपन्यास पिंजर पर एक फिल्म भी बनी थी, जो अच्छी खासी चर्चा में रही।

अमृता प्रीतम ने लम्बी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर, 2005 को अपने प्राण त्यागे। अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएँ, कहानियाँ, नज्में और संस्मरण सदैव ही हमारे बीच रहेंगे। अमृता प्रीतम जैसे साहित्यकार रोज-रोज पैदा नहीं होते, उनके जाने से एक युग का अन्त हुआ है। अब वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका साहित्य हमेशा हम सबके बीच में जिन्दा रहेगा और हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।  आह्वान  उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें श्रंद्धांजलि देते हुए उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं द्वारा उन्हें याद कर रहा हैं।

1.    अज्ज आखाँ वारिस शाह

अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ कित्थों क़बरां विच्चों बोलते अज्ज किताब-ए-इश्क़ दा कोई अगला वरका फोलइक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख-लिख मारे वैनअज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ तैनू वारिस शाह नु कैनउठ दर्दमंदां देआ दर्देया उठ तक्क अपना पंजाबअज्ज बेले लाशां बिछियाँ ते लहू दी भरी चनाब

2.    याद

आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया३ण्
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया३ण्
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है३ण्
साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरेए
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गयेए कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये३ण्
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया

3.    हादसा

बरसों की आरी हंस रही थी
घटनाओं के दांत नुकीले थे
अकस्मात एक पाया टूट गया
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया
आंखों में ककड़ छितरा गये
और नजर जख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है

4.    आत्ममिलन

मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज है३३

5.    शहर

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है
सड़कें . बेतुकी दलीलों सी३
और गलियां इस तरह
जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता
कोई उधर
हर मकान एक मुट्ठी सा भिंचा हुआ
दीवारें.किचकिचाती सी
और नालियांए ज्यों मूंह से झाग बहती है
यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी
जो उसे देख कर यह और गरमाती
और हर द्वार के मूंह से
फिर साईकिलों और स्कूटरों के पहिये
गालियों की तरह निकलते
और घंटियां हार्न एक दूसरे पर झपटते
जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रहीघ्
फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलताए बहस में मिलता३
शंख घंटों के सांस सूखते
रात आतीए फिर टपकती और चली जाती
पर नींद में भी बहस खतम न होती
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है ।  
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