3 नवंबर: क्रान्तिकारी कवि वरवर राव का जन्म दिवस
क्रान्तिकारी वरवर राव तेलुगु के प्रसिद्ध अध्यापक, कवि और लेखक हैं। उनका जन्म ३ नवंबर,१९४० में चिन्ना पेंड्याला,वारंगल जिला (तेलंगाना) में हुआ। १९६६ में सृजना (रचना) नामक त्रैमासिक पत्रिका को स्थापित करने में उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जो बाद में मासिक पत्रिका के रूप में तब्दील हुयी, वर्तमान में इसे एक प्रसिद्ध तेलगू जर्नल में गिना जाता है। एक साहित्यकार होने के साथ -साथ वह एक आंदोलनकारी भी रहे वैकल्पिक जन-राजनीति को अपनी आवाज प्रदान की है व जनता के आंदोलनों में बड़ी निडरता, साहस और जिंदादिली के साथ अग्रिम मोर्चे में खड़े दिखाई देते हैं। इन्हीं चीजों के कारण उन्हें लंबे वक्त तक जेल की कालकोठरियों में रखा गया। लेकिन ये कालकोठरियां भी वरवर राव के इरादे, आजादी की आकांक्षा को नहीं डिगा पायीं बल्कि इसके उलट उनकी कविताएं और भी धारधार और परिपक्व होते हुए जनता के बीच गाए जाने लगीं। उनकी कविताएं केवल उनके राज्य तक ही सीमित नहीं रही बल्कि देश के अन्य भागों में भी काफी लोकप्रिय हुयी हैं। उनकी कविताएं बोझिलता और निरसता को खत्म करती हैं, और जीवन में संघर्ष करना सीखाती हैं। उनकी कविता केवल कागजों के पन्नों तक ही सिमटी नहीं रही बल्कि वह एक ऐसा मशाल भी बनी जिसने लोगों में जोश, साहस और लड़ने की चेतना को भी प्रदान किया है। ''चीन के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी लेखक लू शुन ने एक बार कहा था कि हमें अभी आह और आँसू का साहित्य नहीं चाहिए। आह और आँसू का साहित्य से प्रशासक को कोई खतरा नहीं होता, अभी हमें शेर और गर्जन का साहित्य चाहिए'' ठीक उसी तरह क्रान्तिकारी कवि वरवर राव भी आह और आँसू के साहित्य से परहेज करते हैं उनकी कविताओं में जनता की वाणी का ऐसा सुर है जिसमें आशा और उम्मीद, साहस, जेल और गोलियों की बौछार और उनके बीच फूटते जीवन-संगीत में प्रतिरोध का स्वर अपने आप ही फूटता है। सच कहे तो वरवर राव की कविताएं नये समय को बयां करती है ।
१
जब एक डरा हुआ बादल
न्याय की आवाज का गला घोंटता है
तब खून नहीं बहता
आंसू नहीं बहते
बल्कि रोशनी बिजली में बदल जाती है
और बारिश की बूंदें तूफान बन जाती हैं।
जब एक मां अपने आंसू पोछती है
तब जेल की सलाखों से दूर
एक कवि का उठता स्वर
सुनाई देता है।
२
कविता,
वह सच है जिसे छिपाया नहीं जा सकता
वह जनता है जिसे सरकार की जरूरत नहीं
वह जीवन है जिसे अमृत की जरूरत नहीं।
जेबों में
कागज और किताबों में
अलमारी में
तुम जोर लगाकार खोल सकते हो
मेरे हृदय की गहराई
जो एक दुर्लभ फूल जैसा है।
आयत में फंसी चांदनी को देखा
सर उठाकर जब मैंने देखा
तो उसे चांदनी के पुंज के सामान
आकाश में पाया।
देखा तुमने, यह कितना अद्भुत है
मजेदार भी, कि मैं उस चांद को देख भी नहीं सकता
जिसकी चांदनी ने इस कमरे को भर दिया है।
मैं अपने खून में हथकड़ियों की आवाज से भारी
कविता को मिला देता हूं
कोशिश कर के देख लो बांधने की
आजादी से परिंदो
वे उड़ चलेंगे उस ओर
जहां से उन्हें संगीत सुनाई देगा
जरा ध्यान से,
कविता तेजी से जलती है
और जंगल की आग की तरह फैलती है
जरा ध्यान से
कविता लोगों को हिला सकती है
अपने विषैली लालच को छोड़ो
इंतजार करो और देखो
अपनी आंखों से
कविता
चेतना की नदी में
बहती है।
कविता एक खुला रहस्य है
जो मेरे मन में पैठ गई अशाति को खत्म करती है।
वह उस पल में पहुंचती है जिन्हें समझना होगा
औचक ही इसे समझ लेंगे।
मेरे विचारों में जन्म लेकर
वह मेरे भीतर आंदोलन करती है
सच तो यह है कि
मेरी कविता का जन्म
संघर्ष के तापघर में हुआ है
अगर ढक सकते हो तो इसे ढाक कर देखो
तुम पाओगे कि यह तुम्हारी उंगलियों से फिसल कर
आजाद हो गई
इसका जोश, इसका गुस्सा
आग में आंसू डालता है
और बहने लगती है
खून से सने शब्दों की नदी।
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