20 अक्टूबर
2015 को प्रेस क्लब में
देश के सात
प्रमुख लेखक जन
संगठनों जिसमें जन संस्कृति
मंच, जनवादी लेखक
संघ, प्रगतिशील लेखक
संघ, साहित्य संवाद,
प्रेस क्लब आॅफ
इंडिया, दलित लेखक
संघ, विमेंस प्रेस
कार्प की तरफ
से ‘आजादी और
विवके के हक
में प्रतिरोध सभा’
का आयोजन किया
गया।
सभा में बालते
हुए वरिष्ठ आलोचक
विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा
कि यह विविधता
हमारी ताकत है और सौन्दर्य भी
है। सिर्फ एक
मजहब, एक भाषा
की बात करना
तानाशाही है। ये
केवल साहित्य में
सम्मान प्राप्त करने वालें
साहित्यकारों की लड़ाई
नहीं है बल्कि
यह जनवादी सांस्कृतिककर्मियों
व समाज के
सभी तबकों की
लड़ाई है। जिस
तरिके से स्वतंत्र
विचारकों और साहित्यकारों
पर हमला हो
रहा है वह
लोकतंत्र के लिए
बहुत बड़ा खतरा
है। साहित्य अकादमी
को अपनी चुप्पी
तोड़ते हुए इन
लेखकों की हत्याओं
की कड़ी निन्दा
करनी चाहिए।
वहीं जनवादी संघ के
चचंल चौहान ने
कहा कि आज
यथार्थ को समझने
की जरूरत है।
70 के दशक में
जब विरोध होता
था तो इंदिरा
गांधी यह कहकर
अपना बचाव करती
थी कि यह
बाहरी लोगों का
हाथ है। और
आज भी सत्ता
में बैठे लोग
यही बात कह
रहे हैं। आज
व्यवस्था के निशाने
पर वह लोग
ज्यादा हैं जो
लोग सत्ता का
विरोध कर रहे
हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णा
सोबती व के.
सचिच्दानंद का पत्र
भी सभा में
पढ़ा गया जो
उन्होंने साहित्य अकादमी के
अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
को संबोधित करते
हुए लिखा था।
पत्रकार आनंद स्वरूप
वर्मा ने कहा
हम अंधेरे समय
से गुजर रहे
हैं। और अल्पसंख्यक
डरे हुए हैं।
इतनी बड़ी संख्या
में लेखकों का
विरोध में आना
यह देश में
पहली बार हो
रहा है। इस
देश में एक
खास विचारधारा को
पनपाकर माहौल को जहरीला
बनाया जा रहा
है। साहित्यकारों का
यह विरोध लोगों
में जागरूकता लाएगा
और उन्हें इस
प्रतिरोध का हिस्सा
बनायेगा।
वही मैनेजर
पाण्डेय ने अपनी
बात रखते हुए
कहा कि जिन
लोगों ने सम्मानों
की वापसी की
है वह स्वागतयोग्य
है। यह कारंवा
बड़ता ही जायेगा।
कवि नीलाभ ने बात
रखते हुए कहा
कि यह कठिन
लड़ाई है। जो
लोग इस तरह
से लेखकों की
हत्या कर रहे
हैं उनके पास
विचारों की कोई
सम्पदा नहीं है।
इसलिए वे हत्या
पे हत्या कर
रहे हैं। यह
प्रतिरोध जिस तरिके
से आगे बढ़
रहा है यही
हमारी सबसे बड़ी
ताकत है।
प्रगतिशील लेखक संघ
के अली जावेद
ने कहा कि
आज वह वक्त
आ गया जब
चीजों पर सवालिया
निशान लगाया जाना
चाहिए। इस अंधेरे
के खिलाफ हमें
एक मुकम्मल आंदोलन
करना पडे़गा तब
ही हम अपनी
अभिव्यक्ति की आजादी
को बचा पायेंगे।
जन संस्कृति मंच के
आशुतोष ने अपनी
बात रखते हुए
कहा कि वह
लंबे समय बाद
एक अखिल भारतीय
प्रतिरोध देख रहे
हैं। यह असली
आजादी की आंकाक्षा
की लड़ाई है।
जनवादी लेखक संघ
की रेखा अवस्थी
ने कहा कि
जिन लोगों ने
कभी आजादी की
लड़ाई में भाग
ही नहीं लिया
वह कैसे इस
देश में आजादी
के माहौल को
कायम रहने देंगे।
देश के लेखकों
ने हर दौर
में अपनी लेखनी
से विरोध व्यक्त
किया है। आज
लोगों के खाने
पीने और पहनने
पर जिस तरिके
से पांबदी लगायी
जा रही है
यह बहुत ही
चिन्ता की बात
है।
अंत में साहित्य
अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले
कवि मंगलेश डबराल
ने कहा कि
अभिव्यक्ति की आजादी
और देश की
विविधता पर एक
बड़ा खतरा दिखाई
दे रहा है।
इसी प्रतिरोध स्वरूप
उन्होंने अपना पुरस्कार
वापस किया है।
उन्होंने कहा आज
माहौल में बहुत
बड़ी घुटन है
फिर भी लेखकों
को लिखना है।
सभा का संचालन
प्रेस क्लब आॅफ
इंडिया के सचिव नादिम ने किया।
प्रेस क्लब के प्रांगण में सैकड़ों की संख्या में लेखक, बुद्धिजीवि, रंगकर्मी, छात्र व समाज के विभिन्न वर्गो से आए लोगों ने भागीदारी की।
No comments:
Post a Comment