Sunday 13 December 2015

अरुणाभ सौरभ की तीन कवितायेँ

मैना के बहाने आत्मस्वीकारोक्ति

पीली चोंच में हजारों साल का दंश
ह्रदय के कोने से चेंहाकर    
मिरमिरायी आवाज़
आर्त्तनाद में कई आतंक/कई संशय
वक्ष में छिपाकर
सामने चहकती मैना- एक

अपने दल से अलग
पहाड़ी वनस्पतियों की हवा खाकर
उतरी है दरवाजे के पास
कुछ कहना चाहती हो जैसे
अपनी गोल आँखों से
चोंच खोलकर चें..चें..
जैसे किसी को बुला बुलाकर थक गयी हो
कोई कातर पुकार

मैना के करीब जाकर
उसके दुःख को टोहने की कोशिश करना चाहता हूँ
क्या पहाड़ के उजड़ने का उसे दुःख है?
या नदियों के पानी के सूखने चिंता ?
क्या हरियाली नष्ट होने का उसे दुःख है ?
या विस्तृत आकाश पर छाई परायी सौतन सत्ता से परेशान है वो

ऐसे अनगिनत प्रश्नों से घिरता जाता हूँ
अगर मैं सालिम अली होता तो
सब समझ जाता
कालीदास होता तो
उसके दुःख निवारण हेतु
आषाढ़ मास के बादल का पहला टुकड़ा
उसके नाम कर देता
और उसके नायक के विषय में पूछता ज़रूर
बुलेशाह होता तो भी
उस हीर की आँखों को पढकर
उसके प्यार को समझता
और भी बहुत कुछ होता तो
बहुत कुछ करता

पर अभी जो कुछ हूँ
उससे इतना ही कह सकता हूँ कि
इस वक्त ये मैना
बहुत दुःख में है
और हम हैं कि,
कुछ भी नहीं कर पाते इसके लिए
सिवाय इस कविता को लिखने के

लाल क़िला के इर्द-गिर्द

अक्सर लाल क़िला जाता हूँ
हफ्ते मे एक रोज
एक वह भी है जो आती है वहाँ
जिसे देखते ही बढ़ जाती है
कुछ उत्सुकताएँ
जिज्ञासाएँ
और ना जाने कितने शब्द
कि झटके मे पूछ सकूँ
उसका नाम और आता-पता
उसकी शक़्लोसूरत गवाही देती है
कि वो कश्मीर की है
उसी कश्मीर की
जिसे लाल क़िला का बादशाह
कभी कहता था–‘जन्नत’...
लाल क़िला के इर्द-गिर्द बहुत कुछ है
पर मुझे दिखता है सिर्फ वह क़िला
और वह लड़की
जिसकेअंदर
इतिहास ही इतिहास है

वह भी अक्सर आती है -लाल क़िला
इस क़िले की इमारत से पत्थरों की दीवार से
इतिहास चुराना चाहती है वह कश्मीरी लड़की
जिसके एक गाल पर
फौजी बूटों के निशान
और दूसरे गाल पर
आतंकी घूसों की चोट
शायद उसकी छाती का एक-एक भाग
हिदुस्तान-पाकिस्तान ने हथिया लिया है
और मेरे अनुमान से
अगर सुरक्षित है
उसकी जांघों के बीच का कुछ भाग तो
जरूर उसे अकेले मे ही सही
लड़की होने की अहमियत का पता है
वैसे लालकिला भी
दैहिक शोषण का शिकार है
साल मे एकाध बार
दुल्हन की तरह सजाकर
देश के राजा द्वारा
फिर घोषणाओं के भ्रूण को
क़िले के गर्भ मे मारा जाता है
क्या सुरक्षित है यहाँ ?
लाल क़िला!
कश्मीर!
इतिहास!
लड़कियाँ!

कोसी कछार पर

वो बहती रहती है
हिलक लेकर
उबाल मारकर
लुप्त करना चाहती है
कुछ घरों को
उसमें सिमटे-चिपके
इतिहास के धूसर पन्ने
एक तफ़ानी लहर
बौराई आवाज़
अट्टहास
धिक्कार
और कई चिक्कार
समा लेना चाहती है अपने अंदर

चंद लमहों में
अपने गेसुओं में
उलझा लेती है
ज़िन्दगी के कई कश्तरे
और अपनी जबां पर
पोत लेती है
कई रातों की सिहरन
कई माहों की कसक
कई कलंकों की कालिख
कई घरों की बद्दुआ
क्योंकि वह चिड़ियाँ नहीं,
औरत नहीं,

हरहराती हुई
खौलती उबलती नहीं है
जिसकी कछार पर भी डर लगता है...।
क्योंकि वह नहीं जानती
सजीव संवेदनाएँ
वह जीवित है
अपनी लहरों के सहारे
बचपन, जवानी, बुढ़ापा
सब लहरों के नाम
वह नहीं जानती
कि उसके अल्हड़पन
और बेहया हुड़दंग
चाल से
हरेक साल
तबाह हैं
कई जान-माल
पर कैसे समझेगी तू
कैसे बुझेगी
तेरी प्यास-कोसी...?
तू तो
प्यास बुझाने
के बहाने आती है
प्यास ऐसी बुझाती है
कि गला फट जाता है
नाक से लहू टपकता है
यही एक मगजमारी है
कि तुम्हारे जाने के बाद
कई दिनों तक
बुख़ार की सिहरन
और तपती रहती है
उनकी देह
मच्छरों की घिनघिनी
मक्खियों की भिनभिनी
से गायब
उनके रातों की नींद
दिन का चैन
अजीब दुश्चिन्ता
और कँपकँपी

कि फसलें कहाँ गईं?
हरी-हरी फसलें...
और वे उठते हैं हतभागे
छाती भर पानी में जाकर
अपने भासे छप्पर को
उठाते हैं
बाँस के सहारे
गाड़ देने की
नाकामयाब कोशिशें करते
बार-बार, बारंबार
रोती रहती हैं
कई माँएँ, बहनें, पत्नियाँ और बच्चे
उनकी आँखों का पानी
टपटप गिरता है निरंतर
और तुम्हें
मज़बूती मिलती है
इन इंसानी आँसुओं से
रोओ-रोओ मेरे गाँव की माँ-बहनो
क्योंकि कोसी की हहराती धार
तुम्हारी आँखों से ही
निकली है
रोओ-रोओ कोसी कछार की ‘सीताओ’
क्योंकि ‘राम’ अनिश्चितकालीन
अज्ञातवास में गया है
तुम्हें छोड़कर
और तुम
चिग्घाड़-चिग्घाड़कर
बहो बरसात में
क्योंकि तुम्हें
मानवीय आँसुओं से
प्यार है, प्यार है, प्यार...।

एक गर्भस्थ शिशु
माँ के गर्भ से निकल
इसी धरती पर
आने को व्याकुल, जहाँ...
चारों तरफ फैली महामारी

भासी हुई ज़िन्दगी के कश्तरे
भासे छप्पर
तबाह फसलें और जान-माल
सड़ी-फूली लाश
चिक्कार करते हतभागे
चीख़ती माँ-बहनें, बच्चे-बूढ़े,
लाशों की पैरोकारी और
मुआवजे का थूक घोंटते परिजन
वो शिशु बिना दूध-दवाई के
जन्म लेने के बाद
अपनी नग्न आँखों से
कैसे देखेगा
कोसी की कछार...?

                                          कवि केन्द्रीय विद्यालय, दिल्ली  में शिक्षक है 
                                          संपर्क - मोबाइल : 9957833171

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