Awatar Singh Sandhu ‘Paash’
on his 65th birth anniversary
(September 9, 1950- March 23, 1988)
Paash the pen name of Avtar Singh Sandhu, one of the major poets of the Naxalite movement in the Punjabi literature of the 1970s. He was killed by Khalistani extremists on March 23, 1988. His strongly left-wing views were reflected in his poetry. He was born in Talwandi Salem, Jalandhar, Punjab, growing up in the midst of Naxalite; a revolutionary movement waged in Punjab against the landlords, industrialists, traders, etc. who control the means of production. He published his first book of revolutionary poems, Loh-Katha (Iron Tale), in 1970. His militant and provocative tone raised the ire of the establishment and a murder charge was brought against him. He spent nearly two years in jail, before being finally acquitted.
On acquittal, he became involved in Punjab's Maoist front, editing a literary magazine, Siarh (The Plow Line). He became a popular political figure on the left during this period, and was awarded a fellowship at the Punjabi Academy of Letters in 1985. He toured the United Kingdom and the United States the following year; while in U.S., he became involved with the Anti-47 Front, opposing Sikh extremist violence.
1.
अब विदा लेता हूं
अब विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं
उस कविता में
महकते हुए धनिए का जिक्र होना था
ईख की सरसराहट का जिक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का जिक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का जिक्र होना था
उस कविता में मेरे हाथों की सख्ती को मुस्कुराना था
मेरी जांघों की मछलियों ने तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और जिन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त
लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाखून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के खिलाफ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है
युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरी तरफ चुंबन के लिए बढ़े होंटों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र के सांस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आंगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गांव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई ईख के सूखे पत्तों के ढेरों पर लेट कर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हां, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है
मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूं
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूं
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिदि्दयों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेंहू की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रही
मैं शुक्रगुजार हूं, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूं, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूं
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूं
प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को झेलते हुए खुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफा में पड़े रहकर
जख्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे
प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूंज जाना -
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें जिन्दगी ने बनिए बना दिया
जिस्म का रिश्ता समझ सकना,
खुशी और नफरत में कभी भी लकीर न खींचना,
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फि़दा होना,
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना,
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूं
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हें कभी आएगा नही
जिन्हें जिन्दगी ने हिसाबी बना दिया
ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खींचना
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फिदा होना
सहम को चीर कर मिलना और विदा होना
बहुत बहादुरी का काम होता है मेरी दोस्त
मैं अब विदा होता हूं
तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया
कि मेरी नजरों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने
कितना खूबसूरत कर दिया तेरा चेहरा कि मेरे आलिंगनों ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे सांचे में ढाला
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना।
अब विदा लेता हूं
अब विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं
उस कविता में
महकते हुए धनिए का जिक्र होना था
ईख की सरसराहट का जिक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का जिक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का जिक्र होना था
उस कविता में मेरे हाथों की सख्ती को मुस्कुराना था
मेरी जांघों की मछलियों ने तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और जिन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त
लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाखून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के खिलाफ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है
युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरी तरफ चुंबन के लिए बढ़े होंटों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र के सांस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आंगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गांव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई ईख के सूखे पत्तों के ढेरों पर लेट कर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हां, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है
मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूं
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूं
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिदि्दयों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेंहू की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रही
मैं शुक्रगुजार हूं, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूं, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूं
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूं
प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को झेलते हुए खुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफा में पड़े रहकर
जख्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे
प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूंज जाना -
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें जिन्दगी ने बनिए बना दिया
जिस्म का रिश्ता समझ सकना,
खुशी और नफरत में कभी भी लकीर न खींचना,
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फि़दा होना,
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना,
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूं
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हें कभी आएगा नही
जिन्हें जिन्दगी ने हिसाबी बना दिया
ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खींचना
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फिदा होना
सहम को चीर कर मिलना और विदा होना
बहुत बहादुरी का काम होता है मेरी दोस्त
मैं अब विदा होता हूं
तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया
कि मेरी नजरों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने
कितना खूबसूरत कर दिया तेरा चेहरा कि मेरे आलिंगनों ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे सांचे में ढाला
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना।
2.
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना - बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना - बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना -बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना - बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
आपके कानो तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमे सिर्फ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते है
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
3.
सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुयी
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते
4.
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुयी
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते
4.
आधी
रात में
आधी रात में
मेरी कंपकंपी सात रजाइयों में भी न रुकी
सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया
सातों रजाइयां गीली
बुखार एक सौ छः, एक सौ सात
हर सांस पसीना पसीना
युग को पलटने में लगे लोग
बुखार से नहीं मरते
मृत्यु के कंधों पर जानेवालों के लिये
मृत्यु के बाद जिंदगी का सफ़र शुरू होता है
मेरे लिये जिस सूर्य की धूप वर्जित है
मैं उसकी छाया से भी इनकार कर दूंगा
मैं हर खाली सुराही तोड़ दूंगा
मेरा खून और पसीना मिट्टी में मिल गया है
मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आऊंगा
आधी रात में
मेरी कंपकंपी सात रजाइयों में भी न रुकी
सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया
सातों रजाइयां गीली
बुखार एक सौ छः, एक सौ सात
हर सांस पसीना पसीना
युग को पलटने में लगे लोग
बुखार से नहीं मरते
मृत्यु के कंधों पर जानेवालों के लिये
मृत्यु के बाद जिंदगी का सफ़र शुरू होता है
मेरे लिये जिस सूर्य की धूप वर्जित है
मैं उसकी छाया से भी इनकार कर दूंगा
मैं हर खाली सुराही तोड़ दूंगा
मेरा खून और पसीना मिट्टी में मिल गया है
मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आऊंगा
5.
मैं
पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाए कुचलती हुई चली जाए
मस्त हाथी की तरह
एक समूचे मनुष्य की चेतना को?
कि हर सवाल
केवल परिश्रम करते देह की गलती ही हो
क्यों सुना दिया जाता है हर बार
पुराना लतीफा
क्यों कहा जाता है हम जीते है
ज़रा सोचें -
कि हममे से कितनो का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी चीज़ के साथ!
रब्ब की वह कैसी रहमत है
जो गेहू गोड़ते फटे हाथो पर
और मंडी के बीच के तख्तपोश पर फैले मांस के
उस पिलपिले ढेर पर
एक ही समय होती है ?
आखिर क्यों
बैलों की घंटियों
पानी निकालते इंज़नो के शोर में
घिरे हुए चेहरों पर जम गयी है
एक चीखती ख़ामोशी ?
कौन खा जाता है तलकर
टोके पर चारा लगा रहे
कुतरे हुए अरमानो वाले पट्ठे की मछलियों?
क्यों गिड़गिडाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली पुलिस वाले के सामने ?
क्यों कुचले जा रहे आदमी के चीखने को
हर बार कविता कह दिया जाता है ?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाए कुचलती हुई चली जाए
मस्त हाथी की तरह
एक समूचे मनुष्य की चेतना को?
कि हर सवाल
केवल परिश्रम करते देह की गलती ही हो
क्यों सुना दिया जाता है हर बार
पुराना लतीफा
क्यों कहा जाता है हम जीते है
ज़रा सोचें -
कि हममे से कितनो का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी चीज़ के साथ!
रब्ब की वह कैसी रहमत है
जो गेहू गोड़ते फटे हाथो पर
और मंडी के बीच के तख्तपोश पर फैले मांस के
उस पिलपिले ढेर पर
एक ही समय होती है ?
आखिर क्यों
बैलों की घंटियों
पानी निकालते इंज़नो के शोर में
घिरे हुए चेहरों पर जम गयी है
एक चीखती ख़ामोशी ?
कौन खा जाता है तलकर
टोके पर चारा लगा रहे
कुतरे हुए अरमानो वाले पट्ठे की मछलियों?
क्यों गिड़गिडाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली पुलिस वाले के सामने ?
क्यों कुचले जा रहे आदमी के चीखने को
हर बार कविता कह दिया जाता है ?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
6.
तुम्हारे रुक रुक कर जाते पावों की सौगंध बापू
तुम्हारे रुक रुक कर जाते पावों की सौगंध बापू
तुम्हें खाने को आते रातों के जाड़ों का हिसाब
मैं लेकर दूंगा
तुम मेरी फीस की चिंता न करना
मैं अब कौटिल्य से शास्त्र लिखने के लिये
विद्यालय नहीं जाया करूंगा
मैं अब मार्शल और स्मिथ से
बहिन बिंदरों की शादी की चिंता की तरह
बढ़ती कीमतों का हिसाब पूछने नहीं जाऊँगा
बापू तुम यों ही हड्डियों में चिंता न जमाओं
मैं आज पटवारी के पैमाने से नहीं
पूरी उम्र भत्ता ले जा रही मां के पैरों की बिवाईयों से
अपने खेत मापूंगा
मैं आज संदूक के खाली ही रहे खाने की
भायँ - भायँ से तुम्हारा आज तक का दिया लगान गिनूँगा
तुम्हारे रुक रुक कर जाते पावों की सौगंध बापू
मैं आज शमशान भूमि में जा कर
अपने दादा और दादा के दादा के साथ गुप्त बैठके करूंगा
मैं अपने पुरखों से गुफ्तगू कर जान लूँगा
यह सब कुछ किस तरह हुआ
कि जब दुकानों जमा दुकानों का जोड़ मंडी बन गया
यह सब कुछ किस तरह हुआ
कि मंडी जमा तहसील का जोड़ शहर बन गया
मैं रहस्य जानूंगा
मंडी और तहसील बाँझ मैदानों में
कैसे उग आया था थाने का पेड़
बापू तुम मेरी फीस की चिंता न करना
मैं कॉलेज के क्लर्कों के सामने
अब रीं रीं नहीं करूंगा
मैं लेक्चर कम होने की सफाई देने के लिये
अब कभी बेबे या बिंदरों को
झूठा बुखार न चढ़ाया करूंगा
मैं झूठमूठ तुम्हें वृक्ष काटने को गिराकर
तुम्हारी टांग टूटने जैसा कोई बदशगन सा बहाना न करूंगा
मैं अब अंबेदकर के फंडामेंटल राइट्स
सचमुच के न समझूंगा
मैं तुम्हारे पीले चहरे पर
किसी बेजमीर टाउट की मुस्कराहट जैसे सफ़ेद केशों की
शोकमयी नज़रों को न देख सकूंगा
कभी भी उस संजय गांधी को पकड़ कर
मैं तुम्हारे कदमो में पटक दूंगा
मैं उसकी उटपटांग बड़को को
तुम्हारें ईश्वर को निकाली गाली के सामने पटक दूंगा
बापू तुम गम न करना
मैं उस नौजवान हिप्पी को तुम्हारें सामने पूछूंगा
मेरे बचपन की अगली उम्र का क्रम
द्वापर युग की तरह आगे पीछे किस बदमाश ने किया है
मैं उन्हें बताउँगा
निः सत्व फतवों से चीज़ों को पुराना करते जाना
बेगाने बेटों की मांओं के उलटे सीधे नाम रखने
सिर्फ लोरी के लोरी के संगीत में ही सुरक्षित होता हैं
मैं उससे कहूंगा
ममता की लोरी से ज़रा बाहर तो निकलो
तुम्हें पता चले
बाकी का पूरा देश बूढ़ा नहीं है ....
7.
23
मार्च
उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की
देश सारा बच रहा बाक़ी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिडकी में
लोगों की आवाज़ें जम गयीं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था
उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की
देश सारा बच रहा बाक़ी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिडकी में
लोगों की आवाज़ें जम गयीं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था
8.
उनके
शब्द लहू के होते हैं
जिन्होंने उम्र
भर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंदगी का सफर शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिटटी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंदगी का सफर शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिटटी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं
9.
तुम्हारे
बगैर मैं होता ही नहीं
तुम्हारे बगैर मैं बहुत खचाखच रहता हूं
यह दुनिया सारी धक्कम पेल सहित
बेघर पाश की दहलीजें लांघ कर आती-जाती है
तुम्हारे बगैर मैं पूरे का पूरा तूफान होता हूं
ज्वारभाटा और भूकंप होता हूं
तुम्हारे बगैर
मुझे रोज मिलने आते हैं आईंस्टाइन और लेनिन
मेरे साथ बहुत बातें करते हैं
जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही जिक्र नहीं होता
मसलन: समय एक ऐसा परिंदा है
जो गांव और तहसील के बीच उड़ता रहता है
और कभी नहीं थकता
सितारे जुल्फों में गुंथे जाते
या जुल्फें सितारों में-एक ही बात है
मसलन: आदमी का एक और नाम मेनशेविक है
और आदमी की असलियत हर सांस के बीच को खोजना है
लेकिन हाय-हाय!
बीच का रास्ता कहीं नहीं होता
वैसे इन सारी बातों से तुम्हारा जिक्र गायब रहता है।
तुम्हारे बगैर
मेरे पर्स में हमेशा ही हिटलर का चित्र परेड करता है
उस चित्र की पृष्ठभूमि में
अपने गांव की पूरे वीराने और बंजर की पटवार होती है
जिसमें मेरे द्वारा निक्की के ब्याह में गिरवी रखी जमीन के सिवा
बची जमीन भी सिर्फ जर्मनों के लिए ही होती है।
तुम्हारे बगैर, मैं सिद्धार्थ नहीं, बुद्ध होता हूं
और अपना राहुल
जिसे कभी जन्म नहीं देना
कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी नहीं
एक भिक्षु होता है।
तुम्हारे बगैर मेरे घर का फर्श-सेज नहीं
ईंटों का एक समाज होता है
तुम्हारे बगैर सरपंच और उसके गुर्गे
हमारी गुप्त डाक के भेदिए नहीं
श्रीमान बीडीओ के कर्मचारी होते हैं
तुम्हारे बगैर अवतार सिंह संधू महज पाश
और पाश के सिवाय कुछ नहीं होता
तुम्हारे बगैर धरती का गुरुत्व
भुगत रही दुनिया की तकदीर होती है
या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुजरते अ-हादसे
मेरे भविष्य होते हैं
लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है
तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं।
तुम्हारे बगैर मैं बहुत खचाखच रहता हूं
यह दुनिया सारी धक्कम पेल सहित
बेघर पाश की दहलीजें लांघ कर आती-जाती है
तुम्हारे बगैर मैं पूरे का पूरा तूफान होता हूं
ज्वारभाटा और भूकंप होता हूं
तुम्हारे बगैर
मुझे रोज मिलने आते हैं आईंस्टाइन और लेनिन
मेरे साथ बहुत बातें करते हैं
जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही जिक्र नहीं होता
मसलन: समय एक ऐसा परिंदा है
जो गांव और तहसील के बीच उड़ता रहता है
और कभी नहीं थकता
सितारे जुल्फों में गुंथे जाते
या जुल्फें सितारों में-एक ही बात है
मसलन: आदमी का एक और नाम मेनशेविक है
और आदमी की असलियत हर सांस के बीच को खोजना है
लेकिन हाय-हाय!
बीच का रास्ता कहीं नहीं होता
वैसे इन सारी बातों से तुम्हारा जिक्र गायब रहता है।
तुम्हारे बगैर
मेरे पर्स में हमेशा ही हिटलर का चित्र परेड करता है
उस चित्र की पृष्ठभूमि में
अपने गांव की पूरे वीराने और बंजर की पटवार होती है
जिसमें मेरे द्वारा निक्की के ब्याह में गिरवी रखी जमीन के सिवा
बची जमीन भी सिर्फ जर्मनों के लिए ही होती है।
तुम्हारे बगैर, मैं सिद्धार्थ नहीं, बुद्ध होता हूं
और अपना राहुल
जिसे कभी जन्म नहीं देना
कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी नहीं
एक भिक्षु होता है।
तुम्हारे बगैर मेरे घर का फर्श-सेज नहीं
ईंटों का एक समाज होता है
तुम्हारे बगैर सरपंच और उसके गुर्गे
हमारी गुप्त डाक के भेदिए नहीं
श्रीमान बीडीओ के कर्मचारी होते हैं
तुम्हारे बगैर अवतार सिंह संधू महज पाश
और पाश के सिवाय कुछ नहीं होता
तुम्हारे बगैर धरती का गुरुत्व
भुगत रही दुनिया की तकदीर होती है
या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुजरते अ-हादसे
मेरे भविष्य होते हैं
लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है
तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं।
10.
वफा
बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए
मैं भूल गया हूं कब से, अपनी आवाज की पहचान
भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए
मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी
मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका
मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से
मैं अब लिखता नहीं-तुम्हारे धूपिया अंगों की सिर्फ
परछाईं पकड़ता हूं।
कभी तुमने देखा है-लकीरों को बगावत करते?
कोई भी अक्षर मेरे हाथों से
तुम्हारी तस्वीर बन कर ही निकलता है
तुम मुझे हासिल हो(लेकिन) कदम भर की दूरी से
शायद यह कदम मेरी उम्र से ही नहीं
मेरे कई जन्मों से भी बड़ा है
यह कदम फैलते हुए लगातार
रोक लेगा मेरी पूरी धरती को
यह कदम माप लेगा मृत आकाशों को
तुम देश में ही रहना
मैं कभी लौटूंगा विजेता की तरह तुम्हारे आंगन में
इस कदम या मुझे
जरूर दोनों में से किसी को कत्ल होना होगा।
बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए
मैं भूल गया हूं कब से, अपनी आवाज की पहचान
भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए
मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी
मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका
मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से
मैं अब लिखता नहीं-तुम्हारे धूपिया अंगों की सिर्फ
परछाईं पकड़ता हूं।
कभी तुमने देखा है-लकीरों को बगावत करते?
कोई भी अक्षर मेरे हाथों से
तुम्हारी तस्वीर बन कर ही निकलता है
तुम मुझे हासिल हो(लेकिन) कदम भर की दूरी से
शायद यह कदम मेरी उम्र से ही नहीं
मेरे कई जन्मों से भी बड़ा है
यह कदम फैलते हुए लगातार
रोक लेगा मेरी पूरी धरती को
यह कदम माप लेगा मृत आकाशों को
तुम देश में ही रहना
मैं कभी लौटूंगा विजेता की तरह तुम्हारे आंगन में
इस कदम या मुझे
जरूर दोनों में से किसी को कत्ल होना होगा।
11.
हमारे
लहू को आदत है
हमारे लहू को आदत
है
मौसम नहीं देखता,महफ़िल नहीं देखता
जिंदगी के जश्न शुरू कर लेता है
सूली के गीत छेड़ लेता है
शब्द हैं की पत्थरों पर बह-बहकर घिस जाते हैं
लहू है की तब भी गाता है
ज़रा सोचें की रूठी सर्द रातों को कौन मनाए?
निर्मोही पलों को हथेलियों पर कौन खिलाए?
लहू ही है जो रोज धाराओं के होंठ चूमता है
लहू तारीख की दीवारों को उलांघ आता है
यह जश्न यह गीत किसी को बहुत हैं-
जो कल तक हमारे लहू की खामोश नदी में
तैरने का अभ्यास करते थे.
मौसम नहीं देखता,महफ़िल नहीं देखता
जिंदगी के जश्न शुरू कर लेता है
सूली के गीत छेड़ लेता है
शब्द हैं की पत्थरों पर बह-बहकर घिस जाते हैं
लहू है की तब भी गाता है
ज़रा सोचें की रूठी सर्द रातों को कौन मनाए?
निर्मोही पलों को हथेलियों पर कौन खिलाए?
लहू ही है जो रोज धाराओं के होंठ चूमता है
लहू तारीख की दीवारों को उलांघ आता है
यह जश्न यह गीत किसी को बहुत हैं-
जो कल तक हमारे लहू की खामोश नदी में
तैरने का अभ्यास करते थे.
12.
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।
13.
अपनी असुरक्षा से
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाये
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे खतरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
कीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.
14.
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिये
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिये
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कंधों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्व से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाईयों का गला घोटने को मजबूर हैं
कि दफतरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है
जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे.
15.
क्या-क्या नहीं है मेरे पास
क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूं
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें
16.
भगत सिंह ने पहली बार
भगत सिंह ने पहली बार पंजाब
जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से
बुद्धिवाद की ओर मोड़ा था
जिस दिन फांसी दी गयी
उसकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली
जिसका एक पन्ना मोड़ा गया था
पंजाब की जवानी को
उसके आखिरी दिन से
इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगे
17.
हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
जिस तरह हमारे बाजुओं में मछलियां हैं,
जिस तरह बैलों की पीठ पर उभरे
सोटियों के निशान हैं,
जिस तरह कर्ज के कागजों में
हमारा सहमा और सिकुड़ा भविष्य है
हम जिंदगी, बराबरी या कुछ भी और
इसी तरह सचमुच का चाहते हैं
हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
और हम सबकुछ सचमुच का देखना चाहते हैं
जिंदगी, समाजवाद, या कुछ भी और..
18.
संविधान
संविधान
यह पुस्तक मर चुकी है
इसे मत पढ़ो
इसके लफ्जों में मौत की ठण्डक है
और एक-एक पन्ना
जिंदगी के अंतिम पल जैसा भयानक
यह पुस्तक जब बनी थी
तो मैं एक पशु था
सोया हुआ पशु
और जब मैं जागा
तो मेरे इंसान बनने तक
ये पुस्तक मर चुकी थी
अब अगर इस पुस्तक को पढ़ोगे
तो पशु बन जाओगे
सोये हुए पशु।
19.
हम चाहते है अपनी हथेली पर कुछ इस तरह का सच
जैसे गुड की चाशनी में कण होता है
जैसे हुक्के में निकोटिन होती है
जैसे मिलन के समय महबूब की होठों पर
कोई मलाई जैसी चीज़ होती है
(कविता "प्रतिबद्धता" का अंश)
20.
भारत
भारत -
मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए
बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते है
इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में है
जो आज भी वृक्षों की परछाइओं से
वक़्त मापते है
उनके पास, सिवाय पेट के, कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते है
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ है मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्ट्रीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है -
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ
उसे बताऊँ
के भारत के अर्थ
किसी दुष्यंत से सम्बंधित नहीं
वरन खेत में दायर है
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है
21.
मुझे पता है
प्रतिमानों की
रेतीली दीवार से
माँ-बाप की झिड़कियों
से
तुम्हारे गले लग
कर
मैं रोऊँगा नहीं,
संवेदना के कोहरे
में
तुम्हारे आलिंगन
में याद ऐसे फ़ैल जाती है
कि पढ़ी नहीं जाती
अपने खिलाफ छपती
ख़बरें
मुझे पता है कि
चाहे अब नहीं चलते
सुराखवाले गोल
पैसे
लेकिन पीछे छोड़
गए है वे
अपनी साजिश
कि आदमी अभी भी
उतना है
जितना किसी को
गोल पैसे के सुराख से नज़र आता है।
22.
संसद
ज़हरीली शहद की
मक्खी की ओर उंगली न करो
जिसे आप छत्ता
समझते है
वहां जनता के प्रतिनिधि
रहते है।
23.
आज इन्होने दुश्मनों और दोस्तों के बीच खींची
लकीर को भी गिरा दिया है
लेनिन की तस्वीर उठाकर चले
इन ग़ांधी की बरसी मनानेवालों ने
कोठियों में सोफों पर बैठ कर
क्रांति का ज़िक्र करके
कितना पवित्र मजाक किया है
जब पत्थर के गांधी की जरा सी धुनाई पर
प्रोटेस्ट, भूख-हड़तालें, जाँच-मांगें हो सकती है
तो जीवित गाँधियों को भी उकसाया जा सकता है
कि वे देश-भर की भावनाएँ उलझाये रहे
और चुन-चुनकर भगतसिंह को
क़त्ल करवा दिया जाये …………
24.
द्रोणाचार्य के नाम
23.
आज इन्होने दुश्मनों और दोस्तों के बीच खींची
लकीर को भी गिरा दिया है
लेनिन की तस्वीर उठाकर चले
इन ग़ांधी की बरसी मनानेवालों ने
कोठियों में सोफों पर बैठ कर
क्रांति का ज़िक्र करके
कितना पवित्र मजाक किया है
जब पत्थर के गांधी की जरा सी धुनाई पर
प्रोटेस्ट, भूख-हड़तालें, जाँच-मांगें हो सकती है
तो जीवित गाँधियों को भी उकसाया जा सकता है
कि वे देश-भर की भावनाएँ उलझाये रहे
और चुन-चुनकर भगतसिंह को
क़त्ल करवा दिया जाये …………
24.
द्रोणाचार्य के नाम
मेरे गुरुदेव!
उसी वक़्त यदि आप एक भील बच्चा समझ
मेरा अंगूठा काट देते
तो कहानी दूसरी थी.............
लेकिन एन.सी.सी. में
बंदूक उठाने का नुक्ता तो आपने खुद बताया था
कि अपने देश पर
जब कोई मुसीबत आन पड़े
दुश्मन को बना कर
टार्गेट कैसे
घोड़ा दबा देना है ………
अब जब देश पर मुसीबत आ पड़ी
मेरे गुरुदेव!
खुद ही आप दुर्योधन के संग जा मिले हो
लेकिन अब आपका चक्रव्यूह
कहीं भी कारगर न होगा
और पहले वार में ही
हर घनचक्कर का
चौरासी का चक्कर कट जाएगा
हाँ, यदि छोटी उम्र में ही आप एक भील बच्चा समझ
मेरा अंगूठा काट देते
तो कहानी दूसरी थी…………
25.
क़ैद करोगे अंधकार में
क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूं
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें
26.
मुझे चाहिए कुछ बोल
मुझे चाहिए कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके……
छीन लो मुझसे ये भीड़ की टें टें
जला दो मुझे मेरी कविता की धूनी पर
मेरी खोपड़ी पर बेशक खनकाएं शासन का काला डंडा
लेकिन मुझे दे दो कुछ बोल
जिनका गीत बन सके……
मुझे नहीं चाहिए अमीन सयानी के डायलॉग
संभाले आनंद बक्षी, आप जाने लक्ष्मीकांत
मुझे क्या करना है इंदिरा का भाषण
मुझे तो चाहिए कुछ बोल
जिनका गीत बन सके……
मेरे मुंह में ठूस दे यमले जट्टे की तूम्बी
मेरे माथे पे घसीट दे टैगोर का नेशनल एंथम
मेरे सीन पे चिपका दे गुलशन नंदा के नॉवेल
मुझे क्यों पढ़ना है ज़फरनामा
गर मुझे मिल जाए कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके……
मेरी पीठ पर लाद दे वाजपेयी का बोझिल बदन
मेरी गर्दन में डाल दे हेमंत बसु की लाश
मेरी @#$% में दे दे लाला जगत नारायण का सिर
चलो मैं माओ का नाम भी नहीं लेता
लेकिन मुझे दे तो सही कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके ……
मुझे पेन में स्याही न भरने दे
मैं अपनी 'लौह कथा' भी जला देता हूँ
मैं चन्दन* से भी कट्टी कर लेता हूँ
गर मुझे दे दे कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके ……
यह गीत मुझे उन गूंगो को देना है
जिन्हें गीतों की कद्र है
लेकिन जिनका आपके हिसाब से गाना नहीं बनता
गर आपके पास नहीं है कोई बोल, कोई गीत
मुझे बकने दे जो मैं बकता हूँ।
(चन्दन* =प्रसिद्द पंजाबी कवि अमरजीत चन्दन)
27.
अब मेरा हक़ बनता है
मैंने टिकिट खरीद कर
तुम्हारे लोकतंत्र की नौटंकी देखी है
अब तो मेरा रंगशाला में बैठ कर
हाय हाय करने और चीखने का
हक़ बनता है।
आपने भी टिकिट देते समय
कोई छूट नहीं दी
और मैं भी अब अपने बाजू से
परदे फाड़ दूंगा
गद्दे जला डालूँगा।
…………………
28.
अंत में
हमें पैदा नहीं होना था
हमें लड़ना नहीं था
हमें तो हेमकुंठ पर बैठ कर
भक्ति करनी थी
लेकिन जब सतलुज के पानी से भाप उठी
जब क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की जुबाान रुकी
जब लड़को के पास देखा 'जेम्स बांड'
तो मैं कह उठा, चल भाई संत संधू*
नीचे धरती पर चले
पापों का बोझ तो बढ़ता जाता हैं
और अब हम आएं है
यह लो हमारा ज़फरनामा
हमारे हिस्से की कटार हमें दे दो
हमारा पेट हाज़िर हैं……।
(संत संधू* =पाश के कवि मित्र )
-पाश
उसी वक़्त यदि आप एक भील बच्चा समझ
मेरा अंगूठा काट देते
तो कहानी दूसरी थी.............
लेकिन एन.सी.सी. में
बंदूक उठाने का नुक्ता तो आपने खुद बताया था
कि अपने देश पर
जब कोई मुसीबत आन पड़े
दुश्मन को बना कर
टार्गेट कैसे
घोड़ा दबा देना है ………
अब जब देश पर मुसीबत आ पड़ी
मेरे गुरुदेव!
खुद ही आप दुर्योधन के संग जा मिले हो
लेकिन अब आपका चक्रव्यूह
कहीं भी कारगर न होगा
और पहले वार में ही
हर घनचक्कर का
चौरासी का चक्कर कट जाएगा
हाँ, यदि छोटी उम्र में ही आप एक भील बच्चा समझ
मेरा अंगूठा काट देते
तो कहानी दूसरी थी…………
25.
क़ैद करोगे अंधकार में
क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूं
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें
26.
मुझे चाहिए कुछ बोल
मुझे चाहिए कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके……
छीन लो मुझसे ये भीड़ की टें टें
जला दो मुझे मेरी कविता की धूनी पर
मेरी खोपड़ी पर बेशक खनकाएं शासन का काला डंडा
लेकिन मुझे दे दो कुछ बोल
जिनका गीत बन सके……
मुझे नहीं चाहिए अमीन सयानी के डायलॉग
संभाले आनंद बक्षी, आप जाने लक्ष्मीकांत
मुझे क्या करना है इंदिरा का भाषण
मुझे तो चाहिए कुछ बोल
जिनका गीत बन सके……
मेरे मुंह में ठूस दे यमले जट्टे की तूम्बी
मेरे माथे पे घसीट दे टैगोर का नेशनल एंथम
मेरे सीन पे चिपका दे गुलशन नंदा के नॉवेल
मुझे क्यों पढ़ना है ज़फरनामा
गर मुझे मिल जाए कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके……
मेरी पीठ पर लाद दे वाजपेयी का बोझिल बदन
मेरी गर्दन में डाल दे हेमंत बसु की लाश
मेरी @#$% में दे दे लाला जगत नारायण का सिर
चलो मैं माओ का नाम भी नहीं लेता
लेकिन मुझे दे तो सही कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके ……
मुझे पेन में स्याही न भरने दे
मैं अपनी 'लौह कथा' भी जला देता हूँ
मैं चन्दन* से भी कट्टी कर लेता हूँ
गर मुझे दे दे कुछ बोल
जिनका एक गीत बन सके ……
यह गीत मुझे उन गूंगो को देना है
जिन्हें गीतों की कद्र है
लेकिन जिनका आपके हिसाब से गाना नहीं बनता
गर आपके पास नहीं है कोई बोल, कोई गीत
मुझे बकने दे जो मैं बकता हूँ।
(चन्दन* =प्रसिद्द पंजाबी कवि अमरजीत चन्दन)
27.
अब मेरा हक़ बनता है
मैंने टिकिट खरीद कर
तुम्हारे लोकतंत्र की नौटंकी देखी है
अब तो मेरा रंगशाला में बैठ कर
हाय हाय करने और चीखने का
हक़ बनता है।
आपने भी टिकिट देते समय
कोई छूट नहीं दी
और मैं भी अब अपने बाजू से
परदे फाड़ दूंगा
गद्दे जला डालूँगा।
…………………
28.
अंत में
हमें पैदा नहीं होना था
हमें लड़ना नहीं था
हमें तो हेमकुंठ पर बैठ कर
भक्ति करनी थी
लेकिन जब सतलुज के पानी से भाप उठी
जब क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम की जुबाान रुकी
जब लड़को के पास देखा 'जेम्स बांड'
तो मैं कह उठा, चल भाई संत संधू*
नीचे धरती पर चले
पापों का बोझ तो बढ़ता जाता हैं
और अब हम आएं है
यह लो हमारा ज़फरनामा
हमारे हिस्से की कटार हमें दे दो
हमारा पेट हाज़िर हैं……।
(संत संधू* =पाश के कवि मित्र )
-पाश
सौजन्य से - बीच का रास्ता नहीं होता(काव्य संग्रह), विकल्प और रु-ब-रु पाश से तथा वाणी प्रकाशन व राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकों से साभार
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