Tuesday 24 November 2015

रचनाकार, प्रतिरोध और आज का समय



शनिवार, 21 नवंबर, SSS-1 ऑडिटोरियम, जेएनयू, नई दिल्ली, अपराह्नन 2 बजे 

आह्वान : एक जनवादी सांस्कृतिक मुहिम की ओर से “रचनाकार, प्रतिरोध और आज का समय” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रीति गुप्ता ने आह्वान की प्रोस्पेक्टिव से लोगों को अवगत कराया। इसके बाद कार्यक्रम का आरंभ एक जनगीत के साथ किया गया। 

पिछले कुछ समय से देश में बढ रही हिंसा और असहिष्णुता को देखते हुए इस पर चर्चा के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कन्नड़ विद्वान कलबुर्गी की हत्या के बाद उदय प्रकाश ने सबसे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया। बता दें कि इससे पहले दाभोलकर और पानसारे की हत्या की गई। केंद्रीय सत्ता परिवर्तन के बाद देश में ना सिर्फ बुद्धिजीवी ही प्रभावित हुए बल्कि आम आदमी इससे कहीं ज्यादा हिंसा का शिकार हुआ क्योंकि उसके पास प्रतिरोध के लिए शब्द भी नहीं होते। मुजफ्फरनगर, बल्लभगढ जैसे वाकयों के बाद दादरी घटना ने तो सबको झकझोर दिया। अखलाक नाम के व्यक्ति को गोमांस खाने की अफवाह फैलाकर इंसानियत की सारी हदें पार करते हुए मार दिया गया। जिसके बाद पुरस्कार वापसी का दौर सा चल पड़ा; अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती, काशीनाथ सिंह समेत लगभग 150 लेखकों, कलाकारों यहां तक की वैज्ञानिकों ने भी अपने पुरस्कार वापस किये। 

इतनी बड़ी घटना के बाद बहुत जरूरी था कि इस पर चर्चा की जाए और इस बात की तहकीकात की जाए कि लेखकों कलाकारों का यह कदम कितना सही था। इस पर चर्चा के लिए प्रो. चमनलाल, प्रो. वीरभारत तलवार और मशहूर लेखक और चित्रकार अशोक भौमिक को आमंत्रित किया गया। साथ ही युवा कविता पाठ एवं कार्टून प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। कविता पाठ में अरुणाभ सौरभ, संतोष, बबीता उप्रेती, सुशील कुष्माकर, कमलेश, सोनम मौर्या, ब्रजेश, नवीन, जिजीविषा, अभिषेक सौरभ और अंकिता पंवार ने भाग लिया। 

कविता पाठ में मूलत: वर्तमान में चल रही घटनाओं के प्रति क्षोभ के साथ-साथ बड़े शहरों में रहने की दुश्वारियां, बेरोजगारी, युवाओं में बढते तनाव जैसी बातें उभर कर आईं। यही नहीं इन कविताओं में प्रेम का अलग-अलग रूप भी देखने को मिला। कुछ कविताओं में जहां स्त्री का प्रेम और उससे उभरा विद्रोह सीधे तौर पर देखने को मिला। वहीं कुछ में युवाओं के जीवन का सच तो सामने आया ही, साथ ही साथ एक युवा स्त्री का जीवन और प्रेम संघर्ष भी उभरकर सामने आया। जाहिर सी बात है स्त्री होकर जीना और बड़ा संघर्ष है। 

ओम प्रकाश कुशवाहा के कार्टूनों में वर्तमान स्थितियों और देश दुनिया के तमाम ज्वलंत मसलों को बड़ी बारीकी से उकेरा गया। ये कार्टून हमारे समय की विडंबनाओं को बड़ी ही सरलता से दर्शाते हैं। इसके अलावा पाश, मुक्तिबोध, नागार्जुन, आलोक धन्वा, मंगलेश डबराल, हीरा डोम, बर्तोल्त ब्रेख्त, धूमिल, दुष्यंत कुमार जैसे तमाम कवियों के दीवारों पर लगाए कविता पोस्टरों पर भी लोगों की नजर टिकी रही। 

कार्यक्रम में आए तमाम लोगों ने कविता पाठ, कार्टून और कविता पोस्टर को काफी सराहा। 

इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक कर्मी हेम मिश्रा ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि जनता के पक्ष में बोलने वालों की हत्या की जा रही है और उन्हें जेल भेजा जा रहा है। हेम ने इस तरह के हमलों को फासीवाद की दस्तक बताया। उन्होंने कहा कि जनता के सपनों की हत्या की कोशिश की जा रही है। साथ ही हेम ने बल्ली सिंह चीमा का मशहूर जनगीत ‘तय करो किस ओर हो तुम’ गाकर संघर्ष और मानवता की लड़ाई जारी रखने की मानवीय प्रतिबद्धता दोहराई। 

साहित्यकारों के प्रतिरोध को किसी लाभ से प्रेरित बताने वालों को जवाब देते हुए चमन लाल ने वर्तमान परिदृश्य में रचनाकारों के प्रतिरोध को जायज ठहराया और कहा कि यदि 90 साल की उम्र में कृष्णा सोबती कोई पुरस्कार लौटा रही हैं तो इसका संबंध किसी फायदे से नहीं बल्कि सामाजिक सरोकार से है। उन्होंने कहा कि इस प्रतिरोध में साहित्यकारों के साथ-साथ कलाकार और वैज्ञानिक भी सामने आये हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि वैज्ञानिकों ने किसी सामाजिक मुद्दे पर इतनी सक्रियता दिखाई।

वीरभारत तलवार ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रतिरोध के मुख्य तीन रास्ते बताए। एक तो उसके समानांतर वैकल्पिक राजनैतिक दलों का गठन, दूसरा; विचारधारात्मक प्रतिरोध और तीसरा; जन आंदोलन। जिनमें विचारधारात्मक संघर्ष सिर्फ विद्यार्थी और लेखक ही कर सकते हैं और जन आंदोलन को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि यही वो रास्ता है जो एक मामूली आदमी तक को भी बदल देता है। साथ ही प्रो तलवार ने सांप्रदायिकता विरोधी कानून की अनिवार्यता पर बल देते हुए इसे अब तक पारित ना करा पाने के लिए कांग्रेस के साथ-साथ समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टियों की भी आलोचना की। उन्होंने इस संदर्भ में सत्ताधारी लोगों की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। 

चित्रकार अशोक भौमिक ने इस कार्यक्रम में भारत और वैश्विक चित्रकला के इतिहास को चित्रों के माध्यम से समझाया। इस मौके पर उन्होंने समझाया कि एक खास तबका किस तरह से चित्रकला को अपनी संपत्ति की तरह मानता रहा है और चित्रकार ही किस तरह से एक खास तबके के लिए उसी के अनुसार पेंटिंग करता रहा है। उन्होंने बताया किस तरीके से चित्रकला राजसत्ता और पुरुष सत्ता से प्रभावित रही हैं। 

हालांकि उन्होंने ऐसे चित्र भी दिखाए जो प्रतिरोध में बनाए गए थे और उनका अपना ही इतिहास और महत्व रहा है। 

आजकल चित्रकला का जो बाजार फैलता जा रहा है उसमें कुछ नया नहीं है। उन्होंने महानगरों के चित्रकारों पर टिप्पणी करते हुए बताया कि उनमें कुछ भी रचनात्मक नहीं बचा है और वे आज पूरी तरह से बाजार की गिरफ्त में हैं। भौमिक ने ऐसी चित्रकारी को महज फोटोग्राफ ठहराया। 

एक तरह से कहा जा सकता है कि उन्होंने एक अभिजात और आम लोगों के द्वारा बनाए गए चित्रों की तुलना की। भौमिक ने बताया कि किस तरह से उच्च तबके ने चित्रकारी को महज अपने स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया ताकि भविष्य में आने वाली पीढियां भी उनको जान सकें और उनकी निजी प्रतिष्ठा बनी रहे। वहीं संघर्षशील वर्ग ने इसको अपने दुख, तकलीफ और प्रतिरोध का हथियार बनाया।
कार्यक्रम का संचालन सौरभ कुमार ने किया।


रिपोर्टिंग: अभिषेक सौरभ और अंकिता पंवार 








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