Friday, 25 September 2015

ठीक उसी समय



ठीक उसी समय
तालियों की 
गड़गड़ाहट 
के बीच मिल 
रहा था तुम्हें 
साहित्य का सबसे 
बड़ा पुरुस्कार
देश का गृहमंत्री 
बजा रहा था 
तालियां तुम्हारी 
कविता पर 
तुम गर्व से सर उंचा किए
लोगों की भीड़ पर नजर 
टिकाए हुए थे
मीडिया की नजरे 
हर क्षण कैद कर रही थी 
तुम्हारी मुद्रा को
हां ठीक उसी वक्त
छत्तीसगढ़ के 
बीजापुर के जंगलों 
में उमस भरी गर्मी 
में पसीने से नहाये 
लोग बात कर रहे थे 
फसल के बारे में 
मौसम के बारे में 
खाद और उसकी 
गुणवत्ता के बारे में 
हां वे 
बात कर रहे थे 
तमाम चीजों के बारे
ठीक उसी वक्त 
पहनाया जा रहा था 
शाल 
और दिया जा रहा था
प्रशस्ति पत्र
और
ठीक उसी समय 
मारी जा रही थी 
गोली उन 
मासूमों के
जिस्म में 
जिसने कभी 
नहीं फैलाया 
हाथ और न
गिडगिड़ाये 
तुम्हारे सामने
उन्हें मारा जा रहा था 
बाक्साइट और कच्चे लोहे के लिए 
और हल्ला मचाया जा रहा था
दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र
को बचाने के लिए
दूसरे दिन अखबारों की 
सुखिर्या में थी तुम्हारे
सम्मान की खबर
पूछ बैठी बेटी
पापा देखा आपने 
आज का अखबार 
गर्व से बोले 
लेखक 
हां बेटा 
भरा पड़ा है
कविता से अखबार
नहीं पापा
मैं तो ....
बात कर रही हूं 
उस खबर की जो 
घटी है बीजापुर में
मारा गया है बेदर्दी से 
लूटी गई है इज्जत 
जिन मासूमों की
लेखक हिचकिचायें 
शांती से बोले 
खबरें आती हैं
क्योकी लड़ाई सरकार बनाम 
माओवादी है
बेटी धक्क से रह गयी 
मासूमियत से बोली 
मैं सोचती थी 
यह घटना कर देगी
आपको झकझोर 
और लिखने बैठेगें 
कविता 
उनके बारे में
जो बरसो से 
नहीं लिखी गयी
शायद जिन्होंने 
कभी शिकायत नहीं कि
नहीं बनंगूी मैं कभी 
लेखक 
क्योंकि मैं समझ
गयी हूं 
कौन है 
आपकी कविता का
वारिस 

बबिता उप्रेती 

No comments:

Post a Comment