Monday, 28 September 2015

कवि वीरेन डंगवाल को याद करते हुए...

कवि वीरेन डंगवाल आज हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन समकालीन कविता में उन्होंने अपनी एक अलग छाप छोड़ी। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, नाजिम हिकमत की कविताओं का दुर्लभ अनुवाद भी किया। वह अपनी कविताओं के जरिये हमारे बीच सदा जीवित रहेगें।

पहले उस ने हमारी स्मृति पर डंडे बरसाए 
और कहा - 'असल में यह तुम्हारी स्मृति है' 
फिर उस ने हमारे विवेक को सुन्न किया 
कवि वीरेन डंगवाल

और कहा - 'अब जा कर हुए तुम विवेकवान' 
फिर उस ने हमारी आंखों पर पट्टी बांधी 
और कहा - 'चलो अब उपनिषद पढो' 
फिर उस ने अपनी सजी हुई डोंगी हमारे रक्त की 
नदी में उतार दी 
और कहा - 'अब अपनी तो यही है परम्परा'

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