Friday 16 October 2015

पानी बिन जमीन प्यासी, खेतों में भूख उदासी

 गिरिश तिवारी गिर्दा को हम पहाड़ के एक जाने माने जन कवि के रूप में जानते हैं। गिर्दा वह कवि थे जिन्होंने अपनी कविताओं, गीतों से पहाड़ को एक नया आयाम दिया। उन्होंने अपने गीतो, कविताओं द्वारा संघर्ष की मशाल जलायी और उन्हें लेकर जनमानस के बीच गये और लोगों को संघर्ष के लिए तैयार किया। उनके गीतों, कविताओं के बिना उत्तराखण्ड का कोई भी आंदोलन पूरा नहीं हो सकता। आह्वान उन्हें उनकी कविताओं द्वारा उन्हें याद कर रहा है।


                                                                                  1-

पानी बिन जमीन प्यासी, खेतों में भूख उदासी,
यह उलटबासियां नहीं कबीरा, खालिस खेल सियासी।
पानी बिन जमीन प्यासी , खेतों में भूख उदासी..
 (ये है पानी की जमीन प्यासी)

लोहे का सर-पांव काट कर, बीस बरस में हुये साठ के-2
   अरे! मेरे ग्रामनिवासी कबीरा, झोपड़ पट्टी वासी।
                    पानी बिन...

सोया बच्चा गाये लोरी (उलटबांसिया देखिये)
सोया बच्चा गाये लोरी, पहरेदार करे है चोरी
अरे! जुर्म करे है न्याय निवारण और न्याय करे है चोरी।
                     पानी बिन...

   बंगले में जंगला लग जाये (ये है भू माफिया तंत्र)
बंगले में जंगला लग जाये और जंगल में बंगला लग जाये।
अरे...बन बिल ऐसा लागू होगा, मरे भले बनवासी।
                     पानी बिन...

नल की टोंटी जल को तरसे, हवाघरों में पानी बरसे-2
अरे! ये निर्माण किये अभियंता, मुआयना अधिशासी।
                     पानी बिन...

          (ये जो राष्ट के अधिशासी हैं, देखिये आप)
ये निर्माण किये अभियंता, मुआयना अधिशासी।।
                     पानी बिन...

जो कमाये सो रहे फकीरा-2
    बैठे-ठाले भरे जखीरा।
  भेद यही गहरा है कबीरा और दिखे बात जरा सी।।
पानी बिन जमीन प्यासी, खेतों में भूख उदासी...।।

२-

जहां न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न भाषा जख्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां अंक सच-सच बतलाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां प्रष्न हल तक पहुंचाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न हो झूठ का दिखवा, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न सूट-बूट का हव्वा
,           ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने बोले, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई बात छुपाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई दर्द दुखए, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां फूल स्वाभाविक महके, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां बालपन जी भर चहकें, ऐसा हो स्कूल हमारा

No comments:

Post a Comment